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आचारांगसूत्रे माणरीत्या उपाश्रयं जानीयात् तद्यथा-'असं नए' असंयतः गृहस्थः 'भिक्खुपडियाए' भिक्षुप्रतिज्ञया साधुनिमित्तं 'खुड्डाओ दुवाराओ' क्षुद्रद्वारम् लघुद्वारम् 'महल्लियाओ दुवाराओ' महाद्वारं दीर्घद्वारं 'कुज्जा' कुर्यात् 'जहा पिंडेसणाए जाव' यथा पिण्डैपणायां पूर्वोक्तपिण्डैषणाप्रकरणे यावत्-महाद्वारं क्षुद्रद्वारं कुर्यात् समाः शय्याः विषमाः कुर्यात् विषमाः शय्याः समाः कुर्यात्, प्रवाताः शय्याः निवाताः कुर्यात् निवाताः शय्याः प्रवानाः कुर्यात् अन्तर्वा रहिर्वा उपाश्रयस्य हरितानि छित्त्वा छित्त्वा विदार्य विदार्य 'संथारंगें संथारिज्जा' संस्तारकं शय्यां संस्तरेत् 'बहिया वा णिणक्खु' उपाश्रयाद बहिर्वा निस्सा. रयेत् निष्काशयेत् 'तहप्पगारे' तथाप्रकारे तथाविधे उपयुक्तरूपे 'उवस्सए' उपाश्रये प्रतिरूप से उपाश्रय को जान ले कि 'असंजए भिक्खुपडियाए' असंयत-गृहस्थ श्रावक भिक्षुकी प्रतिज्ञा से अर्थातू साधु के निमित्त 'खुड्डियाओ दुवारियाओ' उपाश्रय के क्षुद्रद्वार-छोटा द्वार को 'महल्लियाओ कुजा' बडा द्वार कर रहा है अर्थात् साधु को अच्छी तरह पवन लगे इसीलिये उसके लिये ही छोटा दरवाजा या घारना-खिडकी वगैरह को पवन संचार के लिये बडा कर रहा है 'तहपिंडेसणाए जाव' जैसे कि पिण्डैषणा के प्रकरण में पहले कह चुके हैं वैसे ही यहां पर भी क्षेत्रशय्या के शिलशिले में समझना चाहिये इसीलिये यावत शब्द से वहां के सभी बातों का ऊहापोह कर लेना चाहिये जैसे कि अधिक पवन साधु को नहीं लगे इसलिये उपाश्रय के बडे द्वार को छोटा द्वार करता हो एवं समशय्या को विषम रूप से बिछाता हो क्योंकि शिरान्हे में ऊंचा और पीथान में कुछ नीचा रहने से शयन में साधु को एशआराम होगा इस भावना से 'संथारगं संथारिजा' समतल रूप से विछाई हुई शय्या को विषम रूप से ऊंचा नीचा
હવે ક્ષેત્રશસ્યાને ઉદેશીને પ્રકારાન્તરથી તેનું પ્રતિપાદન કરે છે
थि- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' से पूर्वात सयमशीद साधु मने साथी से जं पुण एवं उवस्सयं जाणिज्जा' 22 Gायने मेवी रीते गाणे -'असंजए भिक्खुपडियाए'
२५ श्राप साधुने निभित्ते 'खुड्डियाओ दुवारियाओ' पाश्रयना क्षुद्रा२ अर्थात् नाना द्वारने 'महल्लियाओ कुज्जा' मोटर वार ४२ अर्थात् साधुने सारी रीते ५वन मावे ते भाट २४ नाना मारणाने है मारीन मोटी मनाच्या हाय 'जहा पिंडेसणाए' भ (43. પણના પ્રકરણમાં પહેલાં કહેવામાં આવી ગયેલ છે. એ જ પ્રમાણે અહીંયા પણ ક્ષેત્ર શયાના સબંધમાં સમજી લેવું તેથી યાવત શબ્દથી ત્યાંના તમામ કથનની વિચારણા કરી લેવી જેમ કે વધારે પવન સાધુને ન લાગે તેથી ઉપાશ્રયના મોટા દરવાજાને નાના मनायता डाय 'जाय संथारगं संथारिज्जा' तथा सभी शय्याने विषम शते पायता डाय કેમ કે શિરોભાગમાં ઉચ્ચ અને પગને ભાગ કંઈક નીચે રહેવાથી સુવામાં સાધુને
श्री सागसूत्र :४