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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. ३ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३२१ पीजम्-बीजरहितम् 'अप्पहरियं' अल्पहरितम्-हरितरहितम् 'अप्पोस' अल्पोषम्-ओषकणवर्जितम् 'अप्पोदगं' अल्पोदकम्-शीतोदकरहितम् 'जाव'-अप्पसंताणयं' यायत्-अल्पोत्तिङ्गपनकद कमृत्तिकामर्कट अल्पसन्तानकम्-उत्तिङ्गपनकोदकमृत्तिकालूतानन्तुजालवर्जितम् उपाश्रयं यदि जनीयात् तर्हि तहप्पगारे' तथाप्रकारे-तथाविधे अण्डप्राणिबीजादिवजिते 'उवस्सए' उपाश्रये 'पडिले हित्ता' प्रतिलिख्य-प्रतिलेखनं कृत्वा 'पमज्जित्ता प्रमृज्य प्रमार्जनं विधाय 'तो संनया मेव' ततः तदनन्तरम् संयत एव संयमनियमपालनतत्परो भूत्वा 'ठाणं वा स्थान वा-कायोत्सर्गस्थानं 'सेज्जं वा' शय्यां वा-संस्तारकस्थानम् 'णिसीहियं वा' निषीधिकां वा-स्वाध्यायभूमि 'चेतेन्जा' चेतयेत्-विचिन्त्य निर्धारयेत् ॥ सू० ३ ॥ भिक्षुक--संयमशीलसाधु और भिक्षुकी-साध्वी वह यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से उपाश्रय को जान ले कि-यह उयाश्रय 'अप्पंडं' अल्पाण्ड है अर्थात् अण्डा से युक्त नहीं है एवं 'अप्पपाणं' अल्प प्राणी छोटे छोटे प्राणियों से भी यक्त नहीं है तथा 'अप्पवीयं' अल्पवीज-बोजों से भी युक्त नहीं हैं एवं 'अप्पहरियं' अल्प हरित-हरे भरे घास तृण वगैरह से भी युक्त नहीं है और 'अप्पोसं' अल्प ओष-धर्फ ओष कणों से भी युक्त नहीं है एवं 'अप्पोदयं' अल्पोदक-शीतोदक से भी युक्त नहीं है एवं 'जाव अप्पसंताणयं' यावत्-अल्प उत्तिङ्ग पनक उदक मृत्तिका मकर सन्तान उत्तिंग छोटे छोटे जीव जन्तु और पनक-फनगा पतङ्ग तथा शीतोदक से मिश्रित गिली मिट्टी से भी युक्त नहीं है एवं मर्कटसन्तानमकरा लूना तन्तु जाल परम्परा से भी युक्त नहीं है ऐसा देखकर या जान कर 'तहप्पगारे उघस्सए पडिलेहित्ता, पमजित्ता, तओ संजयामेव,' तथा प्रकारे उपा. श्रये इस प्रकार के अण्डे प्राणी जीव जन्तु से रहित उपाश्रय में प्रतिलेखन और प्रमार्जन-ओघा से साफ सुथराकर ने के बाद ही 'तओसंजया मेव' संयत -संयम-नियम पालन पूर्वक 'ठाणं वा' स्थान-ध्यानरूप कायोत्सर्ग करे, और प्रा-नाना नाना प्राणियोथी ५५ युजन नथी. तथा 'अप्पबीयं अपहरियं' ५८५ मीબીયાએ થી પણ યુકત નથી. તથા અલ્પાહરિત લીલેરી ઘાસ તૃણ વિગેરેથી પણ યુક્ત नथी. तथ। 'अपोस अप्पोदयं' ५६५ोष, ५२५ना जशथी ५५ युत नथी. तथा सहया ४५ ४७ पाणीथी ५५ युत नथी. 'जाव अप्पसंताणय' यावत् ६५ लात', पनપતંગ તથા કંઠા પાણીથી મિશ્રિત લીલી માટીથી પણ યુકત નથી. એ પ્રમાણે જોઈને Fongीन 'तहप्पगारे उवस्सर' ॥ २॥ , प्राणी, तु विनाना पाश्रयमां 'पडिलेहित्ता पमज्जित्ता' प्रतिमन भने प्रमा- साधाथी सासु ४२२ 'संजयामेय ठाणं वा सेज्जं वो' सयत-सयम नियम पालन पूर्व स्थान-ध्यान३५ यत्सा ४२वा. भने शय्या सता२४ पाथ२१! स्थान ४२९. 'णिसीहियों वा चेतेज्जा' तथा नीपि।।-स्था. ध्याय सूभिने भारे निवास ४२३१. ॥ सू. ३॥ आ०४१ श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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