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________________ २८८ आचारांगसूत्रे कटु' स च भिक्षुः एककः एकाकी एव अहं भोक्ष्ये इति कृत्वा भिक्षोईस्ताद् ग्लानाथ सुस्वादु आहारजातं गृहीत्वा 'पलिउंचिय पलिउंचिय' परिकुच्य परिकुच्च्य-मनोज्ञमाहारं संगोप्य संगोप्य तत्रासक्तः सन् तस्य वातादिरोगवर्द्ध कत्वमुद्भाव्य 'आलोइज्जा' आलोकयेत्, तथा प्रदर्शयति यथा ग्लानस्य अपथ्योऽयमाहार इति बुद्धिरुत्पद्यते तदाह-'तं जहा-इमे पिंडे इमे लोए' अयं पिण्डः त्वदर्थ साधुनादत्तः किन्तु रूक्षः खलु अयं पिण्डो वर्तते 'इमेतित्ते' अयं पिण्डः तिक्तः 'इमे कडुयए' अयं पिण्डः कटुकः, 'इमे कसाए' अयं पिण्डः कषाय: 'इमे अंबिले' अयं पिण्ड: अम्लः, इमे महुरे' अयं पिण्डो मधुरः वर्तते अत एव 'णो खल इत्तो किंचि' नो खलु इत:-अस्मात् पिण्ड नातात् किश्चित् किमपि पिण्डजातम् 'गिलाणस्स सयइत्ति' ग्लानाय स्वदते-हितकारकं स्यात् इत्येवं छलकपटं विधाय यदि मनोज्ञमाहारजातं स्वयं भुङ्क्ते तर्हि 'माइटाणं संफासे' मातृस्थान-मायाछल कपटादिदोषान् संस्पृशेत् प्राय खाउंगा' ऐसा विचार कर उस साधु के हाथ से ग्लान रुग्ण के लिये लाया हुआ सुस्वादु भोजन जात को ग्रहण कर उस मनोज्ञ आहार को स्वयं खानेकी इच्छा से 'पलिउंचिय पलिउंचिय' छिपा छिपाकर अधिक आसक्ति होने के कारण उस मनोज्ञ आहार को वातादि रोग बर्द्धक कहकर उस ग्लान साधु को 'आलोइज्जा' इस तरह दिखलावे कि, जिस से उस ग्लान साधु को 'यह आहार मेरे लिये अपथ्य-अहित कारक हैं' ऐसी बुद्धि उत्पन्न हो जाये ऐसा बतलाते हुए वह छल कपट करने वाला साधु स्वयं मनोज्ञ सुस्वादु आहार को खाने की इच्छा से कहताहै-कि 'इमे पिंडे इमे लोए' यह पिण्ड-अशनादि आहार तुम्हारे लिये यद्यपि साधुने दिया है किन्तु यह पिण्ड-आहार रूक्ष है 'इमे तित्ते' यह पिण्ड तिक्त है-तीखा है, 'इमे कडए' यह पिण्ड कडवा है, यह 'इमे कसाए' पिण्ड कसेला है 'इमे अबिले' यह पिण्ड खट्टा है, 'इमे महुरे' यह पिण्ड मीठा है इसलिये 'णो खलु इत्तो किंचि गिलाणस्स सयइति' इस पिण्ड जात से कुछ भी पिण्ड ग्लान-रुग्ण को हित कारक नहीं है ऐसा छल, कपट करके यदि उस મનેઝુ ભજનને ખાઈશ એમ વિચાર કરીને એ સાધુની પાસેથી લાન બિમાર સાધુને भोटेना 2. स्वादिष्ट लोनने से पोते पानी ४२छायी ‘पलिउचिय २' छुपाती છુપાવીને તેમાં વધુ પડતિ આસક્તિ હોવાથી એ મને જ્ઞ આહારને વાતાદિ રોગ વધારनार छ तम महीने में भीमार साधुने 'आलोइज्जा' मेवी शते मताव ममारने । माला२ मारे माटे ५५थ्य छ तभ ाणे ते सू२ मताव छ तं जहा' गम है 'इमे पिंडे इमे लोए' 24मा २ तारे भाटे साधु सापे छ ५२तु 241 भाडा२ मारे छे. 'इमे तित्ते' मा ती छे. 'इमे कडुए' मा ४४ छ. 'इमे कसाए' मा ३षाय छे. 'इमे अंविले' मा माटो छे. 'इमे महुरे' मा भीड छ. 'णो खलु इत्तो किंचिगिलाणस्स सयइत्ति' તેથી આ આહારમાંથી કઈ પણ ભાગ બિમારીવાળાને હિતકર નથી. આ રીતે છળકપટથી श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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