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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ७ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् इत्यादि । स पूर्वोक्तो भावभिक्षुर्वा, भिक्षुको वा गृहपनिकुलं यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञयामिक्षालाभाशयेन अनुप्रवेष्टुकामः एभिः वक्ष्यमाणैः साकं न प्रविशेत, पूर्व प्रविष्टोवा एभिः पक्ष्यमाणः साकं न निष्क्रामेदित्यग्रेणान्वयः, यः सार्घन प्रवेष्टव्यं तान् नाश्ग्राहं गृहीसा आहणो अन्नउस्थिरण वा, गारथिएण वा' इत्यादि । न अन्ययथिकेन वा सह, नवा गृहस्थेन सह गृहपतिकुलं भावभिक्षुः प्रविशेत् न वा निर्गच्छेदित्यर्थः, तैः अन्तीथिकैः गृहस्थैर्वा सह प्रविशतां साधूनाम् एते दोषा भवन्ति, तथाहि-ते अन्यतीथिकाः गृहस्था वा साधूनां पृष्ठतो वा गच्छेयुः, अग्रतो वा, उभयथाऽपि दोषा भवन्ति तत्र तेषाम् अग्रतो गमने साधूनां तदनुवृत्ति गमनप्रयुक्तः ईप्रित्ययः कर्मबन्धः प्रवचनलाघवञ्च भवेत्, तेषाश्च जात्याधुत्कर्षः करने की विधि बतलाते हैं-'से भिक्खू बा भिक्खूणी या गाहावइ कुलं जाव' सचह पूर्वोक्त भाव भिक्षु और भाव भिक्षुकी गृहपति-श्रावक ग्रहस्थ के यावत घरमें 'पपिसिउकामे' अनुप्रवेश करने की इच्छा वाले 'णो अन्नउथिएणवा' अन्य यूथिक अन्यतीर्थिक, दूसरे सम्प्रदाय के सधु या साध्वी के साथ भिक्षा लेने के लिए श्रावक के घर में नहीं प्रवेश करें, और अन्य तीथिक साधु के साथ या सध्वी के साथ श्रावक के घर से भिक्षा लेकर निकले भी नहीं ऐसा अग्रिम क्रिया से सम्बन्ध समझना चाहिये इसी तरह 'गारस्थिएण वा' गृहस्थ श्रावक के साथ भी साधु या साध्वी को भिक्षा लेने के लिये गृहस्थ के घर में नहीं जाना चाहिये और उसके साथ भिक्षा लेकर लौटना भी नहीं चाहिये, क्योंकि ये अन्यतीर्थिक साधु या ग्रहस्थ श्राचक यदि भाव साधु के आगे या पीछे से जाते हैं तो नीचे बतलाएजानेवाले दोष हो सकते हैं-उन में उनके आगे आगे जाने से साधु को उन के पोछे पीछे गमन प्रयुक्त ईयांप्रत्यय, कर्मबन्ध और प्रवचन में लाघन 'हलकापन' दोष होगा और उन अन्यतीर्थिकों को जाति आदि का ७२पान विEि पता -'से भिक्खु वा भिक्षुणी वा' पूतिला साधु मने ला साया 'गाहावइकुलं' जाव' २५ श्री५४ना घरमा यावत् 'पविसिउ कामे' प्रवेश ४२पाथी ४२छाथी 'णो अन्नउत्थिएण वा अन्य यूथि ४ अन्य सहायना साधु ५२१सापानी सा लिया सेवा માટે શ્રાવકના ઘરમાં પ્રવેશ કરે નહીં તેમજ અન્ય તિર્થિક સાધુ સાધ્વીની સાથે ભિક્ષા લઈને नी' ५ नही, अश शते 'गारथिएण वा' २५ श्रीपनी साथे पर साधु मगर सावाये मिक्षा सेवा माटे
ग य . तेभर 'परिहारिओ वा' प२ि७२४ साधु 'अपारिहारिएण' पावस्था साधुनी 'सद्धिं' साथे 'पिंडबायपडियाए' मा बामनी आशाथी 'गाहावइकुलं' 28थना घरमा 'नो पविसिज्ज वा प्रवेश न ४३ 'निक्खमिज्ज वा' मार पडे। प्रदेश ४२લાની સાથે બહાર પણ ન નીકળે, કેમકે તે અન્યતીર્થિક સાધુ અથવા ગૃહસ્થ શ્રાવક જે, ભાવસાધુની પહેલાં કે પછી જાય તે નીચે બતાવવામાં આવેલ દેષ થવા સંભવ છે. તેમાં તેમની પહેલાં જવાથી સાધુને તેની પાછળ પાછળ જવાથી ઈર્યાપ્રત્યય, કર્મબન્ધ અને પ્રવચનમાં
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श्रीमायारागसूत्र:४