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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ७ सू० ९५ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् २४३ वा गृहपतिप्रभृतीनां कुलानि-गृहाणि 'णो पुवामेव' नो पूर्वमेव भिक्षाग्रहणात्प्रागेव 'भत्ताए वा पाणाए वा' भक्ताय वा पानाय वा "णिक्ख मिन्ज वा पविसेज्ज वा' निष्क्रामेद् वा प्रविशेद् वा पूर्वपरिचितेषु पितृपितृव्यादिकुलेषु पश्चात् परिचितेषु श्वशुरश्याला दिकुलेषु च भक्तपानाद्यर्थ न प्रविशेद् नापि निष्क्रामेदित्यर्थः, तनिषेधे हेतुपूर्वकं प्रमाणमाह- केवलीब्रूयाआयाणमेयं' केवली केवलज्ञानी सर्वज्ञः त्रिकालदर्शी भगवान् महावीरो ब्रूयात्-ब्रवीतिउपदिशति-आदानमेतत् आदानम्-कर्मागमनद्वारम् कर्मावकारणम् एतत्-पितृपितृव्यादि सम्बन्धिगृहाद् चतुर्विधम् अशनादिभिक्षाग्रहणम्, तत्र हेतुमाह-'पुरा पेहाए' पुरा पूर्व, प्रेक्ष्यदृष्ट्वा भिक्षाग्रहणात्प्रागेव अवलोक्य 'तस्स परो अट्ठाए' तस्य भिक्षुकस्य सम्बन्धी परः दातापुरुषः, अर्थाय-निमित्ताय भिक्षादानार्थमित्यर्थः 'असणं वा पाणं वा खादिमं वा साइमं वा' या पश्चात् परिचित श्वशुर वगैरह के घर में ‘णो पुव्वा मेव भत्ताए वा पाणाएवा' भिक्षा ग्रहण करने से पहले ही भक्त-भात के लिये या पान के लिये 'णिक्खमिज या पविसेज वा' नहीं प्रवेश करे और भिक्षा लेकर वहां से निकले भी नहीं अर्थात् साधु और साध्वी भात दाल वगैरह के लिये और जल दूध चाय वगैरह के लिये भी पूर्व परिचित पिता पितृव्य चाचा वगैरह के घर में एवं पश्चात् परिचित श्वशुर श्यालक वगैरह के घर में नहीं जाय और भिक्षा लेकर निकले भी नहीं क्योंकि-'केवली बूया'-केवली-केवलज्ञानी वीतराग भगवान् त्रिकाल दर्शी प्रभु उपदेश देते हैं कि-एतन् यह पिता चाचा-श्वशुर वगैरह अपने सम्बन्धियों के घर से अशनादि चतुर्विध आहार जात को भिक्षा के रूप में ग्रहण करना "आयाणमेयं' आदानम्-कर्मागमन का द्वार है अर्थात् कर्मास्रवका कारण है क्योंकि 'पुरा पेहाए' पुरा प्रेक्ष्प-भिक्षा ग्रहण से पहले ही साधु साध्वी को देखकर 'तस्स परो अट्ठाए' उस साधु का सम्बन्धी दाता पुरुष भिक्षा देने के लिये 'असणं वा पाणं वा खादिमं वा साइमं वा' अशनादि चतुर्विध आहारजात को આવા પ્રકારના પૂર્વ પરિચિત પિત્રાદિકના ઘરમાં અથવા પશ્ચાત્ પરિચિત શ્વસુર વિગેરેના घरमा ‘णो पुवामेव' भिक्षा ९५ ४ा पडसा 'भत्ताए वा पाणाए वा' साहार भाटे 4241 पान मा ‘णो णिक्खमिज्ज वा पविसेज्ज वा' प्रवेश ४२३ नही तभर लक्षा લઈને ત્યાંથી નીકળવું પણ નહીં. અર્થાત્ સાધુ કે સાધ્વી આહાર મેળવવા માટે અથવા પાન મેળવવા માટે પણ પૂર્વ પરિચિત એવા પિતા, કાકા, વિગેરેના ઘરમાં તેમજ પશ્ચાતુ પરિચિત સસરા, સાળા વિગેરેના ઘરોમાં જવું નહીં તેમજ ભિક્ષા લઈને નીકળવું પણ नही भ3-'केवलीबूया' ज्ञानी 24 पीत लपान महापा२ प्रभु ५११ माये छ, 'आयाणमेय' ५५ परिथित पश्चात् पश्ििथत समधीयाना धेरथी हार पाणी ४२ ते गमनन २ . उभ 3-'पुरा पेहाए' मिक्षा सेता पडसा २४ साधुन नधन साधुन समधीयो 'तस्स परोअढाए' भिक्षा मा५५॥ भाट अर्थात् सशन माहार
श्री सागसूत्र :४