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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ७ सू० ७४ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् कीकृतमुदकम, 'अण्णयरं वा' अन्यतरद वा-अन्यद् वा 'तहप्पगारं' तथाप्रकारम्-द्राक्षाजलादि 'पाणगजायं पानकजातम्-पानीयसामान्यम् 'पुव्यामेव आलोएज्जा' पूर्वमेव आलो. चयेद् ध्यानपूर्वकं यतनां कुर्यात, आलोच्य च तं गृहस्थं 'आउसोत्ति वा, भगिणित्ति या' हे आयुष्मन् ! इति वा पुरुष संबोध्य हे भगिनि ! इति वा स्त्रियं संबोध्य यात्-'दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं पाणगनायं' दास्यसि मे-मह्यम् इतः पूर्वोक्तात् पानक जाताद अन्यतरत-यत् किमपि एकतरम् पानकजातम् पानीयम् ? इति, 'से सेवं वयंत परो वइज्जा' अथ तम् भिक्षु. कम्, एवम् - उपयुंकरीत्या वदन्तं याचमानं परो-गृहस्थः वदेत-वक्ष्यमाणरीत्या यदि कथयेत-'आउसंतो समणा " आयुष्मन् ! भगवन् ! श्रमण ! 'तुमं चेवेयं पाणगजायं' त्यश्चैव एतत्-पुरोवर्ति पानकजातम् पानीयम् तिलोदकादिरूपम् 'पडिग्गहेण वा' पतद्ग्रहेण वा पात्रेण 'उस्सिचियाणं उस्सिचियाण' उत्सिच्य उत्सिच्य स्वयमेव उद्धृत्य 'ओयत्तियाण' चियडं चा' प्रासुकी कृत-जीवरहित किया हुआ यह उष्णोदक पानी है या 'अण्णयरंवा तहप्पगारं' तथा प्रकार दूसरे ही इस प्रकार इक्कीस तरह के 'पाणगजायं' द्राक्षा जल वगैरह पानक जात और पानी सामान्य को पूर्व-'पुचा मेव आलोएन्जा' लेने से पहले ही ध्यान पूर्वक आलोचन-जाचपडताल करले और उस को अच्छी तरह देख भाल करके उस गृहस्थ श्रावक को या, श्राविका को क्रमसे 'आउसो त्तिवा, भगिणि त्तिवा,' हे आयुष्मन! हे भगिनि! ऐसा सम्बोधितकर कहे कि 'दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं पाणग जायं?' इन पूर्वोक्त शुद्ध तिलोदक वगैरह में से कुछ एक भी पानी मुझे तुम दोगे? इस तरह साधु और साध्वी के शुद्ध पानी माङ्गने पर 'से सेवं वयंतं परो यइज्जा' पर-श्रावक गृहस्थ एवं उक्तरीति से चोलते हुए उस साधु को कहे कि-'आउसंतो! समणा ! तुमं चेवेय पाणगजायं' हे आयुष्मन् ! भगवन् ! श्रमण ! साधु महाराज ! तुम ही इस पुरोवर्ती सामने में रक्खे हुये तिलोदक वगैरह शुद्धपानी को 'पडिग्गहेण चा, उस्सिचिया णं उस्सि
पाणी . अथवा 'सुद्धवियडं वा' शुद्ध-प्रासु४ अर्थात् १ विनानु ४२६ मा पाणी छ. 'अण्णयर वा' मा भी रीते प्रारथी ये वीस प्रा२ना द्राक्षा विणेरे पाणी भने 'तहप्पगर पाणगजाय" तवी तनु मयित पाणी 'पुत्वामेव आलोएज्जा' देता पडे यान पू: मायनशन ते गृहस्य १४ म॥२ श्रावि४ाने 'आउसोत्ति भगिणिति वा उ मायुःभन् मया के मन मे साधन री 3 3 'दाहिसिमे एतो अण्णयर पाणगजाय' 20 yasत शुद्ध dिates विशेश्मांथी 31 से पाणी भने माया
॥ रीते साधु मया साची शुद्ध पाणी मागे त्यारे 'से सेवंवदंतं परो वइज्जा' । प्रमा) ता तभने ७२५ श्राप छ -'आउसंतो समणा ! तुमचेवेय पाणगजाय' હે આયુષ્મન ભગવાન શ્રમણ તમે જ આ સામે રાખેલ તિલેદક વિગેરેના શુદ્ધ પાણીને 'पडिगाहेण वा उस्सिचियाणं उसिंचियाण' पात्रथा तभी पाते न भने 'ओयत्तियाण
श्री सागसूत्र :४