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________________ ____आचारांगसूत्रे वर्तते तहिं एवं विधेन किञ्चिन्मात्र स्नग्धेनापि हस्तादिना दीयमानमशनादिकं नैव गृह्णीया दित्याशयेनाह-शेषं तच्चैव-शेषम् -अवशिष्टं तच्चैव पूर्वोक्तमेव बोध्यम् तथाविधमाहारजात नो प्रतिगृह्णीयादित्यर्थः । 'एवं ससरक्खे उदउल्ले' एवम्-पूर्वोक्तरीत्या यथा शीतोदकाइँण स्निग्धेन च हस्तादिना दीयमानमशनादिकं न ग्राओं तथा सरनस्केन रजपायुक्तेनापि हस्तादिना दीयमानं न ग्राह्य मित्याशये नाह-सरजस्का उदकार्दा 'ससिणिद्धे' सस्निग्धा 'मट्टिया ऊसे' मृत्तिका उपरम्-क्षारमृत्तिका, 'हरियाले' हरितालम् 'हिंगुलुए' हिंगुलकम् मणोसिला' मनः शिला-स्निग्धप्रस्तरविशेषः 'अंजणे' अञ्जनम् 'लोणे' लवणम् गेरुय' गैरिकम 'वन्निय' वर्णिका-पीतवर्णमृत्तिका, 'सेडिय' सेटिका-खटिकामृत्तिका विशेषरूपा 'सोरट्ठिय' सौराष्ट्रिका-तुबरिका, मृत्तिका विशेषरूपा 'पिट्ठ' पिष्टकम्-आमतण्डुलचूर्णविशेषः 'कुक्कुस' कुक्कुसाः पिष्टकचूर्णतुषाः 'उक्कुटुं' पीलुपणिका देरुदृखलचूर्णितार्द्रपर्णचूर्गम् इत्येवं स्निग्य. हुआ आहार को नहीं ग्रहण करे इसी प्रकार पूर्वोक्तरीति से जैसे शीतोदक से आई और स्निग्ध हस्तादि से दिया जाता हुआ अशनादि नहीं लेना चाहिये ऐसा कहा है वैसे ही 'ससरवखे' रज-धूलि से युक्त हस्तादि से भी दिया जाता हुआ अशनादि आहार नहीं लेना चाहिये इस आशय से कहते हैं-सरजस्का-रजधूलि से युक्त 'उदउल्ल' पानी से गीली की गयी एवं 'ससिणि द्धे' सस्निग्धा-स्नेह युक्त मिट्टी और 'मट्टियाऊसे हरियाले' ऊपर-क्षार मिट्टी तथा हरिताल एवं 'हिंगूलए' हिंगुल और 'मणोसिला मनः शिला-शंख मरमर पत्थर विशेष तथा 'अंजणे लोणे' अञ्जन एवं लवण-नमक तथा 'गेरुयवणि या' गैरिक एवं वर्णिक पीलीमिट्टी तथा 'सेडिय' सेटिका-खटिकामिट्टी 'पत्थर खडी' और 'सोरहिया'सौराष्ट्र का तुबरमिट्टी, एवं 'पिटकुक्कुस' पिष्टक पिढार और कुक्कुस-पिष्टक चूर्ण एवं 'उक्कुटुं' कुक्कुटुं-पीलुपर्णिका वगैरह का उदखल में चूर्ण किया गया आर्द्र चूर्ण विशेष इस प्रकार के स्निग्ध रज क्षार मृत्तिका वगैरह से 'संसटेन-संस्पृष्ट એ વાક્ય કહેલ છે. અર્થાત્ બાકીનું કથન પૂર્વકથિત પ્રમાણે સમજવું. અર્થાત્ આવી शत भात माहा२ ५९ सय २३॥ नही. 'एवं ससरक्खे उदउल्ले' मा प्रमाणे पूति રીતે જેમ શીદકથી આદ્ર અને સિનગ્ધ હાથ વિગેરેથી આપવામાં આવતે અનાદિ લેવો ન જોઈએ. તે જ પ્રમાણે રજ ધૂળવાળા હાથ વિગેરેથી પણ અપાતે અશનાદિ આહાર सेवा न ये. सेतुथी -ह्यु , 'ससरक्खे' धूलथी युक्त 'उद्उल्ले' पाणीथी मीना ४२४ 'ससिणि मट्टिया' स्निग्ध भाटीथी 'असे' मारी भाटी तथा 'हरियाले' रिता भने 'हिंगुलए' Yिस भने 'मणोसिला' भन:शिला । भरभ२ ५.२२ विशेष 'अंजणे' तथा मन तथा 'लोणे' भी तथा गेरुय' ३ तथा 'पणिय' 4 पीजीमाटी तथा 'सेडिया' 4311 भाटी (५.२२ 451) तथा 'सोरठिय' सौराष्ट्र। (गोपीयन) भाटी 'पिटु' तथा ५४४ भने 'कुक्कुस' ४७ की माटी तथा उक्कुटुं' पी. पण विगैरेने भा२यामा नामीन श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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