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आचारांगसूत्रे गृहस्थगृहस्य, स्नानस्य वा वर्चसो वा-पुरोषस्य संलोके-दर्शनस्थाने तत्प्रतिद्वारं वा-स्नानागारस्य पुरीपोत्सर्गस्य वा द्वारभागे तिष्ठेत्, एतावता यस्मिन् स्थाने तिष्ठता साधुना गृहस्थस्य स्नानपुरीपोत्सर्गक्रिये दृश्येते तस्मिन् स्थाने न तिष्ठेत् इति फलितम् दर्शनाशङ्कयानिःसंदेहता क्रियाऽसंभवेन निरोधजन्यप्रद्वेषसंभवात् तथा 'गो गाहावइकुलस्स आलोयं वा थिग्गलं वा संधि वा दगभवणं वा' नो गृहपतिकुलस्य लोकम्-वातायनादि-आलोक स्थानम् वा, थिग्गलं-पतित भित्यादिसंस्कारितस्थलप्रदेशं वा, सन्धिम् तस्करादिखातं कुडयमित्यादि सन्धिस्थलं वा, उदकभवनं वा-स्नानागारादि रूपं जलगृहं वा, एतानि सर्वाण्यपि स्थलानि 'बाहाभो पगिज्झिपपगिज्झिय'बाहू-भुजौ प्रगृह्य प्रगृह्य-पौनःपुन्येन प्रसार्य 'अंगुलियाए वा उद्दिसिय उद्दिसिय' अगुल्या वा उद्दिश्य उद्दिश्य-निर्देशं कृत्वा, शरीरं वा 'उग्णमिय उग्णमिय' उनम्य उन्नम्य-ऊर्ध्वमुत्थाप्य२ 'अवनमिय अवनमिय' अवनम्य अब नम्प-अधः संकोच्य२ 'णिज्झाइज्जा' निध्यायेत् नो स्वयम् अवलोकयेद, नो अन्यस्मै दर्शसानने तथा जाजरू-पखाना के सामने भी साधु को खडा नहीं रहना चाहिये क्योंकि ऐसे बाथरूम और पैखाना के द्वार पर खडे रहने से स्नान पेशाब मलत्याग करने में लज्जा संकोच होने से मल वगैरह का निरोध जन्य प्रद्वेष होगा, इसलिये ऐसे स्थान में भी साधुको नहीं ठहरना चाहिये इसी तरह 'णो गाहावइकुलस्स अलोयं वा' गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घरका वातायन को अथवा थिग्गलंवा परिष्कृत भित्ति-दीवाल वगैरह स्थल प्रदेश को तथा 'संधिवा' तस्कर चौर वगैरह के द्वारा खोदा हुआ कुडय भित्ति आदि सन्धि (सैन्ध) स्थल को एवं 'दगमवणं वा स्नानागार वगैरह जलगृह को अर्थातू इन सभी स्थलों को 'बाहाओ पगिज्झिय' बांह फैलाकर और 'अंगुलियाए वा उद्दिसिय' अंगुलि उठाकर निर्देश नहीं करे एवं शरीर या मस्तक वगैरह को 'उण्णमिय' ऊपर उठाकर तथा 'अवनमिय' नीचे तरफ संकुचित कर 'णिज्झा इज्जा' स्वयं नहीं देखे तथा दूसरे को भी नहीं दिखलावे क्योंकि वस्तुओं की चोरी होने से ચેકડી, બાથરૂમ કે જાજરૂના બારણુ આગળ ઉભા રહેવાથી સ્નાન, પિશાબ. મળત્યાગ કરવામાં લજજા અને સંકોચ થવાથી મળ વિગેરેના કાણુરૂપ પ્રàષ થાય છે તેથી सेवा स्थानामा ५ साधु साची GAL न २ न . ४ प्रमाणे 'यो गाहा. बह कुलस्स' पति-गृहस्थ ब्राना घरनी 'आलोयं वा थिग्गलं वा' मारीन अथवा १२२ १२ लात विगैरे २५ प्रशने तथा 'सधिं वा' या२ विगेरेथे मोस लातनी सधा २५०२. 'दगभवणं वा' तथा नाना२ विगैरे २४सने मर्यात् ॥ संघमा स्थानान 'थाहाओ पगिज्झिय पगिझिय' यशापाने तथा 'अंगुलियाए वा उद्दिसिय उदिसिय' winजाथी उद्देशाने न १२ नही, तथा 'उण्णमिय उ गमिय' शरीर है भाथाने यु शन 1440 'अवणमिय अवणमिय' नीये नभाचीन 'णिज्जाइज्जा' पाते नही मन
श्री सागसूत्र :४