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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ४ सू० ४१ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् १०७ 'अहपुण एवं जाणिज्जा' तत्र तिष्ठन् अथ पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या स साधुः जानीयात्'खीरिणियाओ गावी मो खीरियाओ पेहाए' क्षीरिणीः पयस्विनी: गाः दुग्धाः कृतपूर्वदोहनाः प्रेक्ष्य अवलोक्य, पयस्विन्यो गावः पूर्वमेव दुग्धाः सन्तीति दृष्ट्वा, एवम् 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पेहाए' अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिमं वा एतच्चतुर्विधमाहारजातम् उपस्कृतं पूर्वमेव संस्कृतं परिपक्वं कृतमस्तीनि प्रेक्ष्य अवलोक्य 'पुराए जूहिए' पुरा पूर्व प्रदत्तं किश्चिदस्तीति 'सेवं गच्चा' स पूर्वोक्तो साधुः एवं रीत्या ज्ञात्या 'तो संजयामेव ततः तदनन्तरम् संयत एव 'गाहावइकुलं' गृहपतिकुलम् "पिंडवायपडियाए' पिण्डपातप्रतिज्ञया भिक्षालाभार्थ 'पविसिज्ज वा' प्रविशेद वा 'णिक्वमिज्ज वा' निष्कामेद वा भिक्षामादाय निर्गच्छेदित्यर्थः भिक्षार्थ वा उपाश्रयाद् निर्गच्छेदिति भावः ॥ सू० ४१ ।। कहते हैं-'अणावाय' गृहस्थ श्रावकों के यातायात रहित प्रदेश में और 'असंलोए चिट्ठिज्जा' जन सम्पर्क शून्य स्थान में जाकर रहे, किन्तु 'अह पुण एवं जाणिज्जा' यदि वह साधु और साध्वी एकान्त में रहते हुए ऐसा वक्ष्यमाण रीति से जानले कि 'खीरिणियाओ गावीओ खीरियाओ पेहाए' पयस्विनी-दूधारु गाय पहले ही दह ली गई है ऐसा देखकर या जानकर और 'असणं चा पाणं वा खाइमंचा साइमं चा उवक्खडियं पेहाए' अशन, पान, खादिम और स्वादिम चतुर्विध आहार जात पहले ही पकालिया गया है ऐसा देखकर या जान कर और 'पुराए जूहिए सेवं गच्चा' 'पुरा प्रदत्तम्' पहले ही उस पकाए हुए अशनादि चतुर्विध आहारजात में से कुछ देदिये गये हैं-ऐसा वह साधु और साध्वी जान कर 'तओ संजयामेव गाहावइकुलं पिंड वाय पडियाए'-उस के अनन्तर बाद में संयत होकर ही वह साधु और साध्वी गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में पिण्ड पात की प्रतिज्ञा से भिक्षालाभ की आशासे 'पविसिज्ज वा' प्रवेश करे और भिक्षा लेकर वहां से 'णिक्खमिज्ज वा' निकले, अथवा भिक्षा लेने के लिये उपाश्रय से निकले । ४१॥ ત્યાંથી એકાન્તમાં અર્થાત જનસંપને રહિત પ્રદેશમાં ચાલ્યા જવું. અને એકાન્તમાં જઈને 'अणावायमसंलोए चिद्विज्जा' ७२५ श्रावन अव२४५२ विनान प्रदेशमा मन नस विनाला स्थानमा ४७२ मा २९ ५२ तु 'अहपुण एवं जाणिज्जा' नेते साधु मन सावी सन्तमा २हीन gी है-'खीरिणियाओ गाविओ खीरियाओ पेहाए' मी भायाने पडेला बीसी छ. म य भने 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवसंखडियं पेहाए' अशन, पान, माहिम मन स्वाहिम यारे रन माहार त भा२। मापता पडसा 1 २४ गये छ तेयु न , तीन भने 'पुराए जहिए' पडेसा मे राधेटा अशनायितुविध 28२ द्रव्यमांथा थाई मापी हीस. 'सेवं णच्चा' से शत ते साधु सावा तीन 'तओ संजयामेव' ते ५छी सयत न गाहावइकुलं पिंडयायपडियाए' स्याना घरमा लिan anनी माशायी पविसिज्ज या णिक्ख
श्री मायारागसूत्र :४