________________
आचारागसूत्रे साक्षितया च गईं-गर्हणां करोमि व्युत्सृजामि-मृषावादं परित्यजामि स्वात्मानं मृषावादात् पृथक्करोमि इति भावः 'तरिसमाओ पंच भावणाओ भवंति' तस्य-द्वितीयमहाव्रतस्य मृषा. वादविरमणरूपस्य इमाः-वक्ष्यमाणस्वरूपाः पश्च भावना भवन्ति 'तथिमा पढमा भावणा' तत्र-तासु पञ्चभावनासु इयम्-वक्ष्यमाणस्वरूपा प्रथमा भावना बोध्या, तथाहि 'अणुवीइभासी से निग्गंथे' अनुविचिन्त्य-यो विचार्य भाषी-भाषते स निर्ग्रन्थः-साधुरुच्यते 'नो अणणुवीइभाप्ती' नो अननुविचिन्त्य यो विचारम् अकृत्वैव भाषी-भाषते स न निर्ग्रन्थः इत्यर्थः, भाषण की गर्हणा करता हूं और उस मृषावाद का परित्याग करता हूं अर्थात् मिथ्याभाषण रूप मृषावाद से अपने आत्मा को पृथक अलग करता हूं इस तरह गौतमादि गणधरोंने भगवान् श्री महावीर स्वामी से पच्चक्खान लिया, याने मिथ्याभाषण रूप मृषावाद से विरत होने के लिये गौतमादि गणधरोंने प्रतिज्ञा की, अर्थात् आज से कभी भी झूठ नहीं बोलूंगा इस तरह अपने मन में संकल्प कर मिथ्याभाषण से निवृत्त होने के लिये विचार किया। ___ अब उपर्युक्त द्वितीय मिथ्याभाषण रूप मृषावाद की वक्ष्यमाण रूप पांच भावनाओं को बतलाते हुए सब से पहले पहली भावना को बतलाते हैं-'तस्सि मामओ पंच भावणाओ भवंति'-उत्त द्वितीय मृषवाद विरमण रूप महाव्रत की वक्ष्यमाण रूप से पांच भावनाएं समझनी चाहिये उन पांचों 'तथिमा पढमा भावणा' वक्ष्यमाण स्वरूप भावनाओ में यह अभी बतलायी जानेवाली पहली भावना कही जाती हैं कि-'अणुवीइ भासी से निग्गंथे' जो साधु विचार कर बोलता है वही निर्ग्रन्थ जैन मुनि महात्मा हो सकता है-'नो अणणुवीइ भासी' किन्तु जो साधु विचार किये विना ही बोलता है वह निर्ग्रन्थ जैनमुनि महात्मा કરું છું અને ગુરૂજનેની સાક્ષિપણામાં એ મૃષાવાદ રૂપ મિથ્યા ભાષણની ગર્પણ કરું છું અને એ મૃષાવાદને પરિત્યાગ કરૂં છું અર્થાત્ મિથ્યા ભાષણરૂપ મૃષાવાદથી પિતાના આત્માને અલગ કરું છું આ પ્રમાણે ગૌતમાદિ ગણધરેએ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી પાસે પચ્ચખાન લીધા. અર્થાત્ મિથ્યાભાષણ રૂપ મૃષાવાદથી વિરત થવા માટે ગૌતમાદિ ગણધરોએ પ્રતિજ્ઞા કરી એટલે કે આજથી કોઈપણ વખતે જુઠું બેલીશું નહીં. આ પ્રમાણે પિતાના મનમાં નિશ્ચય કરીને મિથ્યાભાષણથી નિવૃત્ત થવા માટે વિચાર નકકી કર્યો.
- હવે ઉપરોક્ત બીજી મિથ્યાભાષણ રૂપ મૃષાવાદની વયમાણ રીતે પાંચ ભાવનાઓ सतावत सौथी पडदा पडेदी मापना मताव छ.-'तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति' से भी मृषावा (१२५ ३५ मडाबतनी १६५माए रीते पांय मापनामा थाय छे. 'तथिमा पढमा भावणा' मे १६५माए। पांय भावनामामा मा ४ाम भावनारी पडली भावना छे. 'अणुवीई भासी' रे साधु (वयाशन यन मासे छ. मेरी से निग्गंथे' नियन भुनी उपाय छे. ५२तु णो अणणुवीइ भासी से निगंथे' र साधु १२ विधायुमासे छे.
श्री सागसूत्र :४