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________________ १०८४ आचारागसूत्रे युक्तानां प्राणिनामभिप्रायं ज्ञातुं समर्थों बभूवेति भावः 'तओ णं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु-भगवतो मनःपर्यवज्ञानोत्पत्त्पनन्तरम् श्रमणो भगवान् महावीर: 'पव्वइए समाणे' प्रव. जितः सन् दीक्षितः सन् 'मित्त नाइसयणसंबंधिवग्गं पडिविसज्जेइ' मित्रज्ञातिस्वजनसम्बन्धिवर्गम्-स्नेहिदायादबन्धु कुटुम्ब समूहम् प्रतिविसर्जयति-निवर्तयति-परावर्तनं करोतीत्यर्थः 'पडिविसज्जित्ता' प्रतिविसर्य-प्रतिविसर्जनं कृत्वा 'इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ' इमम्-वक्ष्यमाणम् एतावद्रूपम्-एतादृशम् अभिग्रहम्-प्रतिज्ञाविशेषम् अभिगृह्णातिस्वीकरोति तथाहि भगवतो महावीरस्य गृहीतप्रतिज्ञास्त्ररूपमाह-'बारस वासाई वोसटकाए चियत्तदेहे' द्वादशवर्षाणि-द्वादशवर्षपर्यन्तम्, व्युत्सृष्ट कायः-शरीरव्युत्सर्ग कृत्वा त्यक्तदेहः - अब भगवान् वीतराग श्री महावीर स्वामी को दीक्षा ग्रहण करने के बाद मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होने पर वक्ष्यमाण प्रतिज्ञा विशेष का निरूपण करते हैं'तओणं समणे भगवं महावीरे पव्वइए समाणे' ततः खलु-उसके बाद अर्थातू भगवान् श्री महावीर स्वामी के मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होने के बाद श्रमण भगवान् वीतराग वर्द्धमान तीर्थकर जिनेन्द्रवर श्री महावीर स्वामीने प्रव्रजित होकर अर्थात् दीक्षा ग्रहण कर 'मित्तनाइसयणसंबंधिवग्गं मित्र ज्ञाति स्वजन संबंधी वर्ग को अर्थात् मित्र स्नेही ज्ञाति दायाद् भाइबंधु कुटुम्ब परिवार समूह को 'पडिविसज्जेई प्रतिविसर्जन कर दिया 'पडिविसज्जित्ता' यान परावर्तन कर इस प्रकार के 'इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हई' वक्ष्यमाण स्वरूप अभिग्रह याने प्रतिज्ञा विशेष को स्वीकार किया याने भगवान् श्रीमहावीर स्वामीने दीक्षा ग्रहण कर अपने मित्र ज्ञातो संबंधी कुटुंब परिवार वगैरह को घर जाने के लिये प्रतिविसर्जित कर वक्ष्यमाण प्रतिज्ञा विशेष रूप अभिग्रह को स्वीकार किया कि मैं 'पारसवासाइं वोसहकाए' बारह वर्ष पर्यन्त व्युत्सूष्ट काय होकर याने शरीर को व्युत्सर्ग कर और 'चियत्तदेहे' देहगत ममत्व भावना से रहित होकर 'जे केइ હવે ભગવાન વીતરાગ શ્રી મહાવીર સ્વામીને એ દીક્ષા ધારણ કર્યા પછી મન:પર્યવજ્ઞાન च्या पछी पक्ष्यमा प्रतिज्ञा विशेषनु नि३५ ४२वामा मात्र छ-'तओ णं समणे भगवं મgવી?” તે પછી અર્થાત ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી ને મન:પર્યવજ્ઞાન ઉત્પન્ન થયા પછી श्रम मावान् श्रीमहावीर स्वामी 'पव्वइए समाणे' दीक्षा ९५ रीने 'मित्तनाइसयणसंबंधिवग्गं पडिविसज्जेइ' भित्र स्नेही ज्ञाति, वन, साई मन्धु मुटु परिवारसभूलने पाछापाया. मने 'पडिविसज्जित्ता' टुंम परिवारने पापाजीर. 'इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ' मा १६५मा प्र.२थी मे प्रतिज्ञा विशेषता સવીકાર કર્યો અર્થાત્ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીએ દીક્ષા ગ્રહણ કરીને પિતાના મિત્ર જ્ઞાતિ સંબન્ધી કુટુંબ પરિવાર વિગેરેને પિત પિતાને ઘેર જવા પાછાવાળીને વફ્ટમાણ પ્રતિજ્ઞા विशेष३५ मलियन २१४२ - 'बारसवासाइं वोसट्टकाए चियत्तदेहे' हुमार वर्ष श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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