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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. ८ अ, १५ भावनाध्ययनम् १०५९ सहस्रवादनीयां सहस्रपुरुषद्वारा वहनयोग्याम् शिबिकाम् (पालकी) 'विउब्वंति' विकुर्वति वैकि यसमुद्घातक्रियया निष्यादयतीत्यर्थः सा किल वैक्रिय समुद्वातक्रियया निष्पादिता शिविका नानाप्रकारकचित्रैश्चित्रिता आसीत् तदाह - ' तं जहा - ईहामिगउस भतुरगनर मकरविहगवानरकुंजर - रुरुसरभचमर सदूल सोहवणलय भत्तिचित्तलय विज्जाहर मिहुणजुयळजंत जोग जुत्तं' ईहामृग वृषभ-तुरंग - नर-मकर-विहग-वानर - कुञ्जर- रुरु शरभ - चमर- -शार्दूल-सिंह-वनलताभक्तिचित्रलता- विद्याधर- मिथुन मिथुनयुगल यन्त्रयोगयुक्ताम्-वृकविशेष-वृष-अश्व-मनुष्यग्राह-पक्षि-मर्कट- इस्ति - रुरु नाम चित्रमृगविशेषः - शरभ नाम अष्टापदजन्तु विशेष:- चमरगो- शार्दूल - सिंह- वन लता - नानाप्रकार वनलताप्रभृतिचित्रैश्चित्रिता, एवं विद्याधरनाम गन्धर्वविशेषः - मिथुनयुगल नाम स्त्रीपुरुष युगलचित्रैः यन्त्रविशेषयोगयुगलैश्च युक्ता सा शिबिकाक्रिया द्वारा निर्माण किया जो कि एक हजार मनुष्यों से वहन करने योग्य थी और वह वैक्रिय समुद्घान क्रिया द्वारा निष्पादित शिबिका पालकी दोला अनेक प्रकार के चित्रों से चित्रित थी यह बतलाते है- 'तं जहा - ईहामिंग उसभ तुरंग नरमकर वानर कुंजररुरुसर भचमर सद्दूलसी हवणलगभत्तिचित्तलय' यथा - जैसे कि ईहामृग अर्थात् वृकविशेष (भेडिया ) और वृषभ (बैल) तुरग याने घोड़ा नर- मनुष्य विशेष एवं मकर-ग्राह तथा पक्षी - पोपट वगैरह पक्षी विशेष तथा मर्कट बन्दर और हस्ती - हाथी तथा रुरु अर्थात् चितकबरा मृग विशेष एवं शरभ नामका अष्टापद जन्तु विशेष तथा चमर-याने चमरी गाय जिसके पुच्छ वगैरह में स्थित केशों का चमर बनता है ऐसी गाय, एवं शार्दूल अर्थात् शार्दूल नामका अत्यन्त बहुत वडा पशुविशेष जानवर तथा सिंह- शेर एवं वनलता याने अनेक प्रकार के बनलता वगैरह के चित्रों से चित्रित उस शिविका को शक्रादि देवों ने वैक्रिय समुद्घात क्रिया द्वारा निष्पादित किया एवं 'विज्जाहरमिहणजुयल जंतजोगजुत्तं' वह शिविका विद्याधर नामके गंधर्व विशेष एवं मिथुन युगल अर्थात् स्त्री पुरुष जोडके के चित्रों से तथा यंत्र अने प्रारना थियोथी चित्रेसी हुती 'तं जहा' प्रेम - 'ईहामिगाउसभनर मकरविहगवानर' ઇંડામૂળ અર્થાત્ ઘેટા અને બળદ ઘેાડા, મનુષ્ય, મઘર, તથા પક્ષી પેાપટ મેના મયૂર વિગેર पक्षी तथा वानर तथा 'कुंजररुरु सरभचमरसद्दूलसीह ' हाथी तथा ३३ मेटले हार ચિત્ર મૃગ શરભ નામનું આઠ પગવાળૂ પશુ વિશેષ તથા ચમરી ગાય જેના પુછડામ એના વાળેથી ચામરે બને છે તેવી ગાય તથા શાલ નામના એક જાતના સિંહ તથા सामान्य सिंह 'वणलयभत्तिचित्तलय' तथा वनाता अर्थात् अनेक प्रहारनी वनवताना ચિત્રાથી વિચિત્ર એવી એ શિમિકા પાલખીને શક્રાદિ દેવેએ વક્રિય સમુદ્દાત ક્રિયાથી मनावी मने ते पासणी 'विज्जाहरमिहुणजुयल जंतजोगजुत्तं' विद्याधर नामना गंधर्व વિશેષ તથા મિથુનયુગલ અર્થાત્ સ્ત્રી પુરૂષના જોડકાવાળા ચિત્રાથી તથા યંત્ર વિશેષના શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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