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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ स. ८ अ. १५ भावनाध्ययनम् । १०५५ गेन निष्पादितैः शतपाक-सहस्रपाकनाम्ना प्रसिद्धैः तैलैः 'अब्भंगेइ' अभ्यञ्जयति-अभ्यञ्जनं कारयति अभ्यञ्जनं कारयित्वा 'गंध कासाईएहिं उल्लोलेइ' गन्धकाषाये:-सुगन्धयुक्तद्रव्यैः उल्लोलयति-उद्वर्तयति 'उल्लोलित्ता' उल्लोल्य-उद्वर्त्य-उद्वर्तनं कारयित्वा ‘सुद्धोदएणं मजावेइ' शुद्धोदकेन मज्जयति-स्नपयति 'मुद्धोदएण मज्जावित्ता' शुद्धोदकेन मज्जयित्वास्नपयित्वा-स्नानं कारयित्वेत्यर्थः 'जस्स णं मृल्लं सयमहस्सेणं' यस्य खलु-गोशोषरक्तचन्दनस्य मूल्यं शतसहस्रं-लक्ष सुवर्णमुद्रा खलु वर्तते, एतादृशेन तिपडोलतित्तिएणं साहिपाक-सहस्रपाक तैलोंसे याने शतमूली वगैरह औषधि विशेष के योग से निष्पा. दित किये गये शतपाक सहस्रपाक नाम से प्रसिद्ध तैलोंसे अभ्यञ्जन कराते हैं याने वे भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिषिक वैमानिक देवोंने भगवान् श्रीमहावीर स्वामी के उस पूर्वोक्त दिव्य वैक्रिय समुद्घात द्वारा निष्पादित सिंहासन पर पूर्वाभिमुख करके बैठाए हुए भगवान श्रीमहावीर स्वामी को अन्भंगणं करेत्ता'शतपाक सहस्त्रपाक वाले प्रसिद्ध तेलों से अभाञ्जन करके याने भगवान श्रीमहावीर स्वामी के शरीर में तैल का लेप कर के या तैल से मर्दन या मालिश करके 'गंधकासाइ एहिं उल्लोलेइ' गंध कषायों से याने सुगंध युक्त द्रव्यों से उद्धर्तन करते हैं और उल्लोलित्ता'गंघकषायों से याने लुगंध युक्त द्रव्यों से उद्वर्तन करके 'सुद्धो दएणं मज्जावेई शुद्धोदक से अत्यंत पवित्र जल से स्नपन कराते हैं याने भगवान् वीतराग श्रीमहावीर स्वामी को अत्यंत पवित्र जल से नहलाते हैं और 'सुद्धोदएणं मजावित्ता' शुद्धोदक से अर्थात् अत्यंत पवित्र जल से भगवान् श्रीमहावीरस्वामी को नहलाकर 'जस्स णं मूल्लं' जिसे गोशीर्षक रक्त चंदन याने गोरोचन रक्त चंदन का मूल्य याने कीमत 'सयसहस्सेण' एक लाख सुवर्ण मुद्रा थी इस यावित्ता' धीरे धीरे से पूरित ४२ सिडासन ५२ मेसारीने 'सयपागसहस्सपाह तिल्लेहिं अब्भंगेइ' शता: सहसा वाणासाथी थेट शतभूजी सहसभूगी विगेरे ઔષધિ વિશેષના યેથી તયાર કરવામાં આવેલ શત પાક સહસ્ત્રપાક નામથી પ્રસિદ્ધ તેલેથી અત્યંજન કરાવ્યું. એટલે કે એ ભવનપતિ, વાનવ્યંતર, તિષિક વિમાનિક દેવેએ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીને એ પૂર્વોક્ત ક્રિય સમુદ્રઘાતથી તૈયાર કરેલ દિવ્ય સિંહાસનની ઉપર પૂર્વાભિમુખ કરીને બેસાડેલ શ્રી મહાવીર સ્વામીને શત પાક અને સહસ્ત્રપાકવાળા પ્રસિદ્ધ તેલેથી અત્યંજન કરીને અર્થાત ભગવાન મહાવીર સ્વામીના શરીરમાં તેલ લગાવ્યું भने 'अब्भंगणं करेत्ता' तेसथी भासी ४२शन 'गंधकासाइएहिं उल्लोलेइ' १५४ायोथी मेरो है सु वा द्रव्याथी उन ४यु मने 'उल्लोलित्ता' मधपायोथी अर्थात सुगन्धित द्रव्याथी Sad N२ 'सुद्धोदएण मज्जावेई' शुद्ध पाणीथी स्नान ४२।०यु. अने, 'सुद्धो. दएणं मज्जावित्ता भगवान् श्रीमहावीर स्वामीन अत्यत पवित्र शुद्धी:४५ी स्नानपान 'जस्स णं मूल्लं सयसाहस्सेणं' २ गशयन यहन अर्थात् गोरोयन २४तय हनन भक्ष्य श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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