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आचारांगसूत्रे
देवच्छंदयस्स' तस्य खलु देवच्छन्दकस्य-मण्डप विशेषस्य 'बहुमज्झदे सभाए' बहुमध्य देश भागेमध्यभागे इत्यर्थः ' एगं महं सपायपीढं' एकं महत् सपादपीठम् पादपीठसहितम् 'नानामणिकणगरयणभत्तिचित्तं' नानामणिकनकरत्न भक्तिचित्रम् - अनेक प्रकारकपद्मरागामिण सुवर्णरत्नखचित चित्रविचित्रभित्ति सहितम् 'सुभं चारुकंतरूवं' शुभम् - माङ्गलिकं चारू - मनोहरं कान्तरूपम्रमणीयरूपं 'सीहासणं विउब्वाइ' सिंहासनम् विकुरुते - वैक्रियसमुद्घातेन निष्पादयतीत्यर्थः 'सीहासणं विउन्वित्ता' सिंहासनं विकुर्वित्वा विकृत्य, वैक्रियसमुद्घातेन निष्पाद्येत्यर्थः को वैक्रिय समुद्घात कहते हैं उस से नाना प्रकार के रत्नादि से जडे हुए चित्रविचित्र कुड्य भित्ति से युक्त एक अत्यन्त विलक्षण देवच्छन्द याने मण्डप विशेष का निर्माण किया यह फलित हुआ, 'तस्स णं देवच्छंदयस्स बहु मज्ज - देसभाए ' ' उस वैक्रिय समुद्घात क्रिया द्वारा निष्पादित देवच्छन्द याने मंडप विशेष के बहु मध्य भाग में अर्थात् बीच भाग में 'एगं महं सपायपीठ' एक महान अत्यंत विशाल सपादपीठ अर्थात् पाद को रखने के पीठ स्थान के साथ 'नाणामणि कणगरयण भत्तिचित्तं' नाना मणि-अनेक प्रकार के पद्म राग मणि मरकतमणि इन्द्रनील मणि वगैरह से युक्त तथा कनक सुवर्ण हिरण्य रजत हीरक वगैरह रत्नों से जडे हुए चित्रविचित्र भित्ति कुड्य से युक्त 'सुभं चारु कतरूवं' शुभ अत्यंत मंगलमय चारु अत्यंत रमणीय एवं कान्त रूप याने अत्यंत कमनीय 'सीहासणं विजच्वड' सिहासन का भी विकुर्वण किया याने भवनपति वानव्यन्तर वैमानिक देवोंने वैक्रिय समुद्घात रूप विलक्षण दिव्यशक्ति से अनेक प्रकार के रत्नादि से जडे हुवे और चित्रविचित्र रूप से चमकते हुए उस विलक्षण मण्डप विशेष के मध्य भाग में दिव्य सिंहासन का भी निर्माण किया और 'सीहासणं विव्वित्ता' दिव्य नाना मणि रत्न कनक सुवर्णादि विभूषित
અને જયાતિષ્ક દેવે એ પેતાની દિવ્ય શક્તિથી કે જેને બનાવેલહાય તેને વૈક્રિય સમુદ્દાત કહે છે. તેનાથી અનેક પ્રકારના રત્નાદિથી જડેલ ચિત્રવિચિત્ર ભીતાવાળા એક અત્યંત વિલક્ષણ अहारना देवच्छ भेटले } मंडप विशेष निर्माणु यु 'तस्स णं देवच्छंद यस्स' वैडिय समुद्घात प्रियाथी तैयार रेस देवच्छ खेटले मंडप विशेष! 'बहुमज्झदेसभाए' जहु मध्य भागभां अर्थात् वयसा लागमां 'एग मह' सपायपीढ' ४ महान अत्यंत विशाल सपाही अर्थात् पण रामवानु पीड (माले) मने 'नाणामणिकणगभत्तिचित्तं' ने प्रारना पद्मરાગમણિ, મરકતમણિ, ઈન્દ્રનીલમણી વિગેરેથી તથા કનક સુવર્ણ હિરણ્ય રજત હીરા વિગેરે रत्नोथी उस चित्रविचित्र रचना युक्त भने 'सुभ' चारू कंतरूवं' शुभ अत्य ंत मंगलभय अत्यंत रमणीय भने उमनीय उपवाजा 'सीहासणं' विजवइ' सिंहासननी बिदुर्वा કરી. એટલે કે ભવનપતિ વાનભ્યંતર યેતિષિક વિગેરે વૈમાનિક દેવાએ વૈક્રિય સમુદ્ઘાતથી અર્થાત્ દિવ્યશક્તિથી અનેક પ્રકારના રત્ના વિગેરેથી મઢેલ અને ચિત્રવિચિત્રરૂપથી ચમકતા मेवा मे विद्याक्षायु भडचनी वयमां हिव्य सिंहासननु' निर्माणु यु' भने 'सीहासणं विउव्वित्ता'
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪