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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० ६ अ. १५ भावनाध्ययनम्
१०३७ र्णम्-कनकादिधनं त्यक्त्वा परित्यज्य 'चिच्चा बलं' बलम्-चतुरङ्गसेनारूपं बलं त्यक्त्या 'चिच्चा वाहणं' वाहनम् -हस्त्यश्वरथादिवाहनं त्यक्त्वा 'चिचा धणकणगरयण संत सारसावइज' त्यक्त्वा धनकनकरत्न सत्सारस्वाप ते यं-कनकरत्नमाणिक्यादिसारभूतलक्ष्मीमपि परित्यज्येत्यर्थः 'विच्छडित्ता' विच्छेद्य-धनादिदानं दत्वा 'विगोवित्ता' विगोप्य विशेषेण त्यागद्वारा धनादीनां सदुपयोगं कृत्वा 'विस्साणित्ता' विश्राण्य सम्यग्व्यतीय 'दायारेसु दाणं दाइत्ता' दातृषु वाचकेषु वा दानं दत्त्वा 'परिमाइत्ता' परिभाज्य-वितरणार्थ विभाजनं कृत्वा विभागपूर्वकं वा दत्चा एवंरीत्या 'संवच्छरं दलइत्ता' संवत्सरं-वर्षपर्यन्तं यावत् दत्त्वा दानं कृत्वा 'जे से हेमंवान् श्री महावीर बर्द्धमान स्वामी निवृत प्रतिज्ञ होकर 'चिच्चा हिरणं'रजतादि हिरण्य धन को छोड़कर और 'चिच्चा सुवणं' सुवर्ण कनक वगैरह धन का भी परित्याग कर और 'चिच्चा बल' चतुरङ्ग बल अर्थात् हस्ती सबार, घोडे सबार एवं रथ सबार तथा पैदल इस प्रकार चतुरङ्ग सेनाओं को भी छोड़कर और 'चिच्चा वाहणं' हाथी घोड़ा रथादि वाहनों का भी परित्याग कर और 'चिच्चा धण कणगरयण संतसारसावहज्जं'धन कनक रत्न माणिक्यादि सारभूत लक्ष्मी को छोड़कर एवं 'विच्छड्डित्ता' सुवर्ण कनक मरकन मणि पराग मणि इन्द्रनीलमणि वगैरह माणिक्य जात तथा धन धान्यादि का भी दान देकर और 'विगोवित्ता' विगोपन कर याने विशेष रूपसे त्याग-दान द्वारा धनादि का सदुपयोग करके
और धनादि को 'विस्साणित्ता' वितरण करते हुए 'दायारेसुदाणं दाइत्ता' दीन दरिद्र गरीब अपाहिज अङ्गहीन पगु लूल्हे लंगडे वगैरह याचकों को दान देकर या 'परिभाइत्ता' धनादि को वितरण करने के लिये विभाजन कर याने किस को क्या देना चाहिये इस प्रकार जिज्ञासा या आकांक्षाओं को धनादि वितरण की व्यवस्था करने के द्वारा दूर कर और 'सवंच्छरं दलइत्ता' वर्ष पर्यन्त दान देते हुए अर्थात् एक वर्ष तक धनादि का दान करते हुए 'जे से हेमंताणं पढमे 'चिच्चा हिरणं चिच्चा सुवण्णं' २४ता रियाई धनने छन भने सुपर्णन विरे धनना ५४ त्याग रान 'चिच्चाबलं' यतुरंगमा अर्थात् ७६, २५ , २६, तथा पाय॥ मारीतनी यतुरंभ सेनाना त्याग ४री 'चिच्चा वाहण' साथी ३ मा वाहनान। ५५ त्याग ४रीने 'चिच्चा धणकणगरयण संतसारसावइज्ज विच्छड्डित्ता' २१।પતેય અર્થાત્ ધન, કનક, રત્નમાણિકયાદિ સારભૂત લક્ષમીને ત્યાગ કરીને તથા તેનું, કનક મરકતમણિ, પરાગમણી, ઈન્દ્રનીલ મણી વિગેરે માણેક સમૂહ તથા ધનધાન્યાદિનું દાન ४रीन 'विगोवित्ता विपिन ४२रीने थेटवे -विशेष ५४१२वी वानवा नाहिना त्याग सहु५।। ४रीने 'विस्साणित्ता' धनाहिन वित२६१४२ता दायारेसु दाणं दाइत्ता' हीन हरिद, गरीण, હીનાંગ લૂલા લંગડા, વિગેરે યાચકે ને દાન આપીને અથવા ધનાદિનું વિતરણ કરવા માટે 'परिभाइत्ता' ला पाडीन. अर्थात् ने शु मा १ मे रीतनी खासा आक्षामार्नु धन वितरणनी व्यवस्था हीन तथा 'संवच्छर दलइत्ता' व पर्यन्त न देता देता
श्री सागसूत्र :४