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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० ६ अ. १५ भावनाध्ययनम् टीका-सम्प्रति भगवतो श्रीमहावीरस्वामिनो दीक्षाग्रहणसंकल्पं प्ररूपयितुमाह--'तेणं कालेणं तेण समएण' तस्मिन् काले तस्मिन् समये खलु चतुर्थे आरके बहुव्यतिक्रान्ते सति 'समणे भगवं महावीरें श्रमणो भगवान् महावीरः 'नाए नायपुत्ते' ज्ञातः-ज्ञातवंशीयः ज्ञातपुत्र:-ज्ञातवंशीयसिद्धार्थपुत्रः, 'नायकुलनिव्वत्ते' ज्ञातकुलनिवृतः ज्ञातकुरस्य चन्द्रवद् आहादकः 'विदेहे विदेहदिन्ने विदेहः-वज्रनाराचसंहनन समचतुरस्रसंस्थानत्वाद् विशिष्टदेह(शरीर) सम्पन्नः, विदेहदत्त:-त्रिशलायाः विदेहदत्तायाः पुत्रत्वात् महावीरोऽपि विदेहदत्त इत्युपवर्य ते 'विदेह जच्चे विदेहसूमाले विदेहाचः-त्रिशलायाः शरीरोत्पन्नत्वात् कामदेवोपरिविनयप्राप्तिकरणाच्च श्रीमहावीरो विदेहार्च इत्युच्यते, विदेहसुकुमार:-गृहस्थावासे अत्यन्त टीकार्थ-अब भगवान वीतराग श्री महावीर स्वामी के दीक्षा ग्रहण करने का संकल्प बतलाते हैं-'तेणं कालेणं, तेणं समएणं, समणे भगवं महाबोरे नाए' उस काल और उस समय अर्थात् चतुर्थ आरक के बहत से काल के बीत जाने पर श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी ज्ञात याने ज्ञातवंशीय एवं 'नायपुत्ते' ज्ञातपुत्र अर्थात् ज्ञातवंशीय सिद्धार्थ का पुत्र और 'नायकुलनिव्वत्ते' ज्ञात कुल को चन्द्रमा के समान प्रकाशक आह्लाद जनक और 'विदेहे' विदेह अर्थात् विशिष्ट देहवाला अर्थात् वज्र नाराच संहनन के समान चतुरस्त्र संस्थान होने से याने अत्यन्त सुडोल नाक कान कन्धा वगैरह अवयवों का संगठन वाले शरीर से सम्पन्न और 'वदेहदिन्ने' विदेहदत्त-अर्थात् विदेहदत्ता त्रिशला के पुत्र होने से भगवान श्री महावीर स्वामी भी विदेहदत्त कहलाते थे एवं 'विदेहजच्चे भगवान् श्री वीतराग महावीर स्वामी विदेहार्च याने त्रिशला के शरीर से उत्पन्न होने के कारण और कामदेव के ऊपर विजय प्राप्त करने के कारण विदेहार्च भी कहलाते थे, एवं 'विदेहसमाले' विदेहसुकुमार अर्थात् भगवान् श्री महावीर ટીકાથ-હવે વીતરાગ શ્રી મહાવીર સ્વામીના દીક્ષા ગ્રહણ કરવાને સંકલ્પ બતાવે છે. 'तेणं कालेणं तेण समएणं' ते णे अनेते समये अर्थात याथा मारा घो। म समय पति गया पछी 'समणे भगवं महावीरे' श्रम मवान महावीर स्वामी 'नाए नयपुत्ते ज्ञात अर्थात ज्ञात शना मन ज्ञातपुत्र नायकुलनिवत्ते' ज्ञातवशीय सिद्धार्थना पुत्र मन જ્ઞાતકુળને ચંદ્રમા સમાન પ્રકાશક આહાદક તથા વિદેહ અર્થાત્ વિશેષ પ્રકારના દેહવાળા અર્થાત વા નારાચ સંહનનની સમાન ચતુરસ્ત્ર સંસ્થાન હોવાથી એટલે કે અત્યંત સુડોળ ना, आन, ममा विगैरे सवयवाना सना शरीरथी युक्त तथा विदेहदिन्ने' विहे દત્ત અર્થાત્ વિદત્તા ત્રિશલાના પુત્ર હોવાની ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી પણ વિદેહદત્ત उपाय छ. तथा भगवान पीत। श्रीमहावीर स्वामी विदेह जच्चे विडाय' अर्थात् त्रिशલાના શરીરથી ઉત્પન્ન થયેલ હોવાથી તથા કામદેવ ઉપર વિજય પ્રાપ્ત કરવાથી વિદેહાચે પણ 30 ता. तथा 'विदेहसु रमाले' विहेसुमार मात् भगवान श्रीमहावीर स्वामी श्री माया सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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