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________________ २०२६ १०२६ आचारांगसूत्रे नामधेयम् १ मातापितृकृत द्वितीयं नाम महावीरस्य प्ररूपयन्नाह-'सहसंमुइए समणे' सहसंमुदितः-स्वाभाविकगुणोत्पन्नत्वात् समभावधारणात् अत्यन्तघोरतपःकरणाच्च श्रमण इति नामधेयम् २, सम्प्रति भगवतो महावीर इतिनामकरणे हेतुं प्रतिपादयन्नाह-'भीमभयभेरवं उरालं अवेलयं भीमम्-भयानकम् , भयभैरवम्-अत्यन्त भयोत्पादकं भीषणम् , उदारम्प्रधानम् अविचलम अविचलतमम् 'परीसहं सहत्तिकटु' परीपहम्-क्लेशं सहते इतिकृत्वा सर्वप्रकारकक्लेशसहनकर्तत्वात 'देवेहिं से नामं कयं' देवैः तस्य-भगवतः नामकृतम्'समणे भगवं महावीरे' श्रमणो भगवान महावीर इति ३ सांसारिक सर्वक्लेशसहनशालित्वात् देवैः भगवतः श्रमणस्य महावीर इति नामधेयं कृतमितिभावः, सम्प्रति भगवतो महावीरस्य पितुर्नामधेयानि प्रतिपादयितुमाह-'समणस्स णं भगव भो महावीरस्म' श्रमणस्य खलु भगवतो के द्वारा रक्खे गये द्वितीय नाम का निरूपण करते हैं-'सह संयुइए समणे' सहसंमुदित अर्थात् स्वाभाविक गुणों से उत्पन्न होने से और समभाव धारण करने से तथा अत्यन्त घोर तपस्या करने से 'श्रमण' ऐसा नाम समझना चाहिये, अब भगवान् का 'महावीर' ऐसा नाम करने में हेतु का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं -'भीमं भयभेरवं उरालं अवेलयं, परीसहं सहत्ति कटु' भीम अर्थात् भयानक और भय भैरव या अत्यन्त भयोत्पादक होने से भीषण तथा उदार अर्थात् प्रधान और अविचल याने अपने कर्तव्यपथ से विचलित नहीं होने वाले तथा परीषह को अर्थात् सभी प्रकार के क्लेश को सहन करनेवाले होने से 'देवेहिं से नाम कायं समणे भगवं महावीरे'देवोंने उन भगवान् का महावीर ऐसा नाम किया था, अर्थात् सांसारिकसर्व क्लेशों का सहन शील होने से देवों ने 'महावीर' ऐसा नाम किया था, अब भगवान् श्री महावीर के पिता का नाम प्रतिपादन करते हैं'समणस्सणं भगवओमहावीरस्स पिया कामवगुत्तेग श्रमा भगवान् श्रीमहावीर वद्धमाणे' मातापिता पधमान' से प्रमाणे सयु तु. वे मातापिता ॥२॥ रामपामा भावेस भी नाम 'सहसंमुइए समणे' सस मुहित भात सामावि गुथी ५-न याथा તથા સમભાવ રાખવાથી તથા ઘોર તપસ્યા કરવાથી “શ્રમણ એવું નામ સમજવું. वे भडावीर से प्रमाणे नाम ४२वाना उतनुं प्रतिपान ४२ छे. 'भीमं भयभेरवं उरालं अवेलयं' भीम अर्थात् बयान४ अने 'मय १' मेटो , मयत भयो५६५ હોવાથી ભીષણ તથા ઉદાર અર્થાત પ્રધાન તથા અવિચલ અર્થાત્ પિતાના કર્તવ્ય માર્ગથી यमित न था तया परीसहं सहत्तिकट्ट' परीषड थेट या प्रश्न वेशाने सडन ४२वा पाथी देवेहि से नाम कयं समणे भगवं महावीरे' हेवा तमनु नाम श्रम ભગવાન મહાવીર એ પ્રમાણે રાખ્યું હતું એટલે કે સાંસારિક સઘળા કલેશેને સહનાર હોવાથી દેએ “મહાવીર' એ પ્રમાણે નામ રાખ્યું હતું હવે ભગવાન શ્રી મહાવીરના પિતાના नामनु ४थन रे छे. 'समणस्स णं भगवओ महावीरस्स' श्रम भगवान श्री महावीर स्वामीना श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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