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________________ ૨૦૨૨ आचारांगसूत्रे होउ णं कुमारे वद्धमाणे' वत्-तस्मात् कारणात् -हिरण्य सुवर्णादिपरिवर्द्धनाद् हेतोः भवतु खलु अयं कुमारः शिशुः वर्द्धमानः वर्द्धमाननाम्ना प्रसिद्धो भवतु इत्यर्थः 'तओणं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु-तदनन्तरम् श्रमणो भगवान् महावीर:-महावीरस्वामी 'पंचधाइपरिडे' पञ्चधात्रीपरिवृतः-वक्ष्यमाण पञ्चसंख्यधात्रीभिः परिवृतः परिचारकतया ताभिः पञ्चभिः समलङ्कृतोऽभूत् 'तं जहा-खीरधाईए' तद्यथा-क्षीरधाच्या-दुग्धपानकारयिच्या दास्या परि वृतः 'मजणधाईए' मजनधाच्या-स्नानविधापयिच्या दास्या परिवृतः 'मंडणधाईए' मण्डन धाव्या-वस्त्राभूषणपरिधापयिच्या दारया परिवृतः 'खेलावणधाईए' खेलापनधाच्या-क्रीडाकारयिच्या दास्या परिवृतः 'कवाईए' अङ्कभाच्या-क्रोडे स्थापयिच्या दास्या परिवृतः आवे. ष्टितोऽभूदित्यर्थः 'अंकाओ अंकं साहरिजमाणे' अङ्कात-क्रोडात् अङ्क--क्रोडान्तरं संहिय. से भरपूर हो रहा है-'ता होउणं कुमारे वड्डमाणे'-इसलिये अर्थात् हिरण्यादि समृद्धि से परिवर्द्धित होने के कारण यह कुमार शिशु नवजात बालक वर्द्धमान नामसे प्रसिद्ध हो ऐसा विचार कर बर्द्धमान नाम रक्खा 'तओणं समणे भगवं महावीरे पंच धाइपरिखुडे' उसके बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी पांच धात्रियों से परिवृत हुए याने भगवान् श्रीमहावीर स्वामी की परिचर्या वगैरह करने के लिये पांचधात्री वक्ष्यमाण कार्यो को करने के लिये नियुक्त की गयी -'तं जहा'-खीर धाईए'-जैसे कि क्षीर धात्री याने दूध पीलाने वाली धात्री और -'मज्जणधाईए'-मज्जन अर्थात् स्नान करने वाली धात्री-'मंडण धाईए'-एवं वस्त्र आभूषण अलंकार पहनाने वाली धात्री तथा-'खेलावणधाईए' क्रीडा रमत गम्मत कराने वाली धात्री एवं-'अंकधाईए'--अंक धात्री माने गोद में रखकर खेलाने वाली धात्री इस प्रकार पांच धात्री दासी से परिवृत हुए'-अंकाओ अंकं साहरिजमाणे-उसके बाद एक गोदसे दूसरे गोद में लिए जाते हुए भगवान् प्रा. विरे भने ५४।२नी सद्धिथी 'अईव अईव परिवड्ढइ' सत्यत अधि: १२५२ २९ छे. 'ता होउणं कुमारे वद्धमाणे' ते ४२५ थी अर्थात् हि२९या समृद्धिथी वृद्धि गत थवाना કારણે આ બાળક વદ્ધમાન નામથી પ્રસિદ્ધ થા એમ વિચારીને વર્ધમાન એ પ્રમાણે નામ २१v. 'जओणं समणेभगवं महावीरे' ते पछी श्रम भगवान श्री महावीर २१भी पंचधाई परिवुडे' ५५ यात्रियी परिवृत्त २५॥ अर्थात् नपान भडार सामान पश्यिय विगेरे ४२५॥ माटे पाय धात्री १६५म: ४ाय ४२१। भाट रामपामा मावी. 'तं जहा' रेम-खीर धाईए' क्षीरपात्री थेट पी२१वाजी यात्री तया 'मज्जणधाईए' मन पर्थात् न१२।१वाजी पात्री तथा 'मंडणधाईए' स भूषण भने २५।२ पडे।नारी पत्री तया 'खेलावणघाईए' २मतमत वगेरे लावनारी यात्री त 'अंकधाइए' यात्री અર્થાત ખોળામાં રાખીને રમાડવાવાળી ધાત્રી એ રીતે પાંચ ધાત્રી અર્થાત દાસીથી युत प्या. ते पछी 'अंकाओ अंकं साहरिज्जमाणे' मे मोजामाथी भी मामा श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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