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आचारांगसूत्रे तथा 'साहरिएमित्ति जाणइ समणाउसो !' संहिये-देवेन गर्भान्तरं प्राप्ये अहम् इत्यपि भगवान् जानाति उक्तयुक्तेः, हे श्रपणायुष्मन् ! इति सुधर्मस्वामी गणधरः शिष्यं सम्बोध्य कथयतीत्यर्थः कचित् तु आगमोदयसमितिद्वारा प्रकाशिते आचाराङ्गसूत्रे च 'साहरिजमाणे जाणइ इति पाठस्थाने 'साहरिजमाणे नो जाणई' इत्येवं पाठः प्रकाशितोऽस्ति किन्तु प्राचीन हस्तलिखिते, अन्यस्मिन् प्रकाशिते च पुस्तके 'साहरिजमाणे जाणइ' इत्येव पाठ उपलभ्यते इति अयमेव पाठः समीचीनः प्रतिभाति यतः गर्भसंहरण कालस्य अन्तर्मुहूर्तरूपत्वेन अत्यन्त सूक्ष्मत्वाभावात् तस्मिन्काले गर्भसंहरणक्रियाया भगवता ज्ञातुं शक्यत्वात् । सम्प्रति भगवतो महावीरस्वामिनो जन्म प्ररूपयमाह 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन्काले तस्मिन् समये खलु दुष्षमसुषमनामके चतुर्थे आरके बहु व्यतीते सति 'तिसलाए खत्तियाणीए' त्रिशलायाः क्षत्रिहुआ और 'साहरिजमाणे जाणइ' देवेन्द्र से में गर्भान्तर में ले जाया जा रहा हूं ऐसा भी भगवान् जानते हैं इसी तरह 'साहरिएमित्ति जाणइ समणाउसो' मैं देवेन्द्र के द्वारा गर्भान्तर में प्राप्त कराया जा रहा हूं ऐसा भी ज्ञान भगवान् महावीर स्वामी को हुआ यह बात सुधर्मा स्वामी गणधरों को हे श्रमण ! आयु. ज्मन् ! ऐसा सम्बोधन करके कहते हैं कहीं पर यद्यपि आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित आचाराङ्ग सूत्र में और कल्पसूत्र में 'साहरिजमाणे जाणई' इस पाठ के स्थान पर 'साहरिजमाणे नो जाणई ऐसा पाठ प्रकाशित है तथापि प्राचीन हस्त लिखित और अन्य प्रकाशित पुस्तकों में 'साहरिजमाणे जाणइ' यही पाठ उपलब्ध हो रहा है इसलिये यही पाठसमीचीन और युक्तियुक्त लगता है क्यों कि गर्भसंहरण काल का अन्तर मुहूर्त रूप होने से अत्यन्त सूक्ष्म रूप नहीं है इसलिये संहरण क्रिया को भगवान् जान सकते हैं।
__ अब भगवान् महावीर स्वामी के शुभ जन्म का निरूपण करते हैं-'तेणं कालेणं तेणं समरणं' उस कालमें और उस समय में अर्थात् दुष्षम
वाय छे म ५ मगवान ता , ४ प्रभा 'साहरिएमित्ति जाणइ समणाउसो' હું દેવેન્દ્ર દ્વારા બીજા ગર્ભમાં લઈ જવાઈ રહ્યો છું એવું પણ જ્ઞાન ભગવાન મહાવીર સ્વામીને થયું આ વાત સુધમાં સ્વામી ગણધરને હે આયુષ્યન્ શ્રમણ એવું સાધન કરીને કહે છે. જો કે કયાંક આગોદય સમિતિ દ્વારા પ્રકાશિત થયેલ આચારાંગસૂત્રમાં અને ४६५सूत्रमा 'साहरिज्जमाणे जाणइ' से पानी या 'साहरिज्जमाणे णो जाणइ' भाव। પાઠ પ્રગટ થયેલ છે. પરંતુ પ્રાચીન હસ્તલિખિત અને અન્ય પ્રકાશિત થયેલ પુસ્તકોમાં 'साहरिज्जमाणे जाणई' 18 ५५ थाय छे तेथी 24॥२८ ५४ योग्य साथी सत्र २४ કરેલ છે. કેમકે ગર્ભસંહરણ કાળ અંતમુહૂર્તરૂપ હેવાથી અત્યંત સૂફમ રૂપ નથી. તેથી એ કાળમાં ગર્ભસંહરણની ક્રિયાને ભગવાન જાણી શકે છે.
व मापान श्रीमहावीर स्वामीना शुभ सन्मनु नि३५४ ४२वाम मावे छे. 'ते णं कालेणं ते णं समएणं' ते मा म त समयमा अर्थात दुषभ सुषमा नमिना याथा
श्री सागसूत्र :४