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________________ १० आचाराङ्गसूत्रे आयुषो विनाशस्तस्य अन्तः मध्य एव वरीवर्ति, मृतो हि पुनर्भवान्तरोपग्राहिकर्मसद्भादादुत्पद्यत एव, जातोऽपि पुनर्भवान्तरकर्मसत्त्वान्मियत एवेति, संसारे मजनोन्मज्जनमासादयत्येवेत्यर्थः । यद्वा मारः कर्म संसारो वा, तस्यान्तर्वर्ती स भूयो जन्ममरणादिकं लभत एवेति, उक्तं च 'मां मारयते यस्मान्ममारिभूतश्च मारयति वाऽन्तः । अनुसमयं मरणादपि, कर्म भवो वा भवेन्मारः ॥ " इति । प्राय को हृदयमें रखकर टीकाकार कहते हैं कि-" मृतो हि पुनर्भवान्तरोपग्राहिकर्मसद्भावात् उत्पद्यत एव, जातोऽपि पुनर्भवान्तरकर्मसत्त्वात् नियत एव"। ठीक ही है, मृत आत्माकी भवान्तरोपनाही कर्म के सद्भावसे पुनः उत्पत्ति, और उत्पन्न हुए का उसी कर्मके सद्भावसे मरण होता है। अथवा -'मार' शब्दका अर्थ सामान्य कर्म या संसार है । असंयमी जीव वैषयिक सुख के वशवर्ती हो कर कर्मों का आस्रव करते हैं और बारंबार जन्ममरणजन्य दुःखों को झीलते रहते हैं, कहाभी है "मां मारयते यस्मान्ममारिभूतश्च मारयति वान्तः। अनुसमयं मरणादपि, कर्म भवो वा भवेन्मारः" ॥१॥ मार शब्दकी व्युत्पत्तिप्रदर्शक इस पद्य से यही बात टीकाकारने प्रदर्शित की है । इसमें मार-शब्दका अर्थ कर्म या संसार बतलाया है। जो जिसकी हिंसा करता है वह उसका वैरी होता है, वैरभावसे संसारका टी४.२ ४९ छ -“ मृतो हि पुनर्भवान्तरोपग्राहि-कर्मसद्भावात् उत्पद्यते एव, जातोऽपि पुनर्भवान्तरकर्मसत्त्वात् म्रियते” । ઠીક જ છે, મૃત આત્માની ભવાતરોગ્રાહિ કર્મના ભાવથી ફરીથી ઉત્પત્તિ, અને ઉત્પન્ન થયેલાનું તે જ કર્મના સદુભાવથી મરણ થાય છે. અથવા 'मार' पहने। अर्थ सामान्य ४ २ संसा२ छे, असंयमी व वैष. યિક સુખોને વશ બની કર્મોને અસર કરે છે અને વારંવાર જન્મ-મરણનાં दुःोने लगता २९ छे. ५९४ छे “ मां मारयते यस्मान्ममारिभूतश्च मारयति वान्तः । अनुसमयं मरणादपि, कर्म भवो वा भवेन्मारः ॥" ટીકાકારે એ જ માર શબ્દની વ્યુત્પત્તિપ્રદર્શક વાત આ પદ્યથી પ્રદર્શિત ४. छ. मामा ‘मार' A७४। म भ मथा ससा२ मामा न्यावेस छे. श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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