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________________ १८ [८३] विषय १५ आठवी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। १६ भगवानने पापकर्मीका तीन करणतीन योगसे परित्याग किया। ६०३ १७ नवमी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ६०३ भगवान् ग्राम और नगरमें प्रवेश करके उद्गमदोष और उत्पादनादोष रहित शुद्ध आहारको ग्रासैषणादोषका परिवर्जन करते हुए ग्रहण करते थे। ६०३-६०४ १९ दसवों गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ६०४ भगवान् कौवे और कबूतर आदि पक्षियोंको पृथ्वी पर आहारके निमित्त स्थित देख कर उन्हें बाधा नहीं हो, इस प्रकारसे मार्गके एक ओरसे धीरे धीरे चलते हुए आहारकी गवेषणा करते थे। ६०४-६०५ २१ ग्यारहवीं और बारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ६०५ २२ ब्राह्मणों या शाक्यादि श्रमणों या अन्य जीवोंकी वृत्तिच्छेद नहीं हो; इस प्रकारसे आहारका अन्वेषण करते थे। ६०५-६०६ २३ तेरहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २४ भगवानको निर्दोष आहार जैसा-कैसा अन्त प्रान्त भी मिलता था उसीको ले कर संयममें स्थित रहते थे, और यदि नहां मिलता था तो वे किसीकी निन्दा नहीं करते थे। ६०६-६०८ २५ चौदहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। २६ उत्कुटुकादि आसनस्थित भगवान् निर्विकार हो कर ध्यान करते थे। ६०८-६०९ २७ पन्द्रहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ६०९ २८ भगवान् कषाय और गृद्धि और ममत्वरहित हो कर ध्यान ध्याते थे। भगवान्ने छद्मस्थावस्थामें भी कभी प्रमाद नहीं किया। ६०९-६१३ २९ सोलहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । ६०६ श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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