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________________ ५२३ श्रुतस्कन्ध. १ विमोक्ष० अ. ८. उ.८ पूर्वोक्तविधिना पादपोपगमनविधिम् अनुपालयेत् स मुनिः सर्वगात्रनिरोधेऽपि सकलशरीरव्यापारनिरोधेऽपि उत्तप्यमानशरीरो मूर्छन् शगाल-गृध्र-पिपीलिकादिभिभक्ष्यमाणमांसशोणितः मारणान्तिक समुद्धातपातो वा महासत्त्वतया तेनापि ततोऽप्यस्खलन् स्थानात्-द्रव्यतः-संस्तारकस्थानात् , भावतः-शुभाध्यवसायात् नापि नैव व्युद्भमेत्=चलेत , शृगालादिभक्षितमांसशोणितोऽपि तस्मात्स्थानादन्यत्र नैव गच्छेदिति तात्पर्यम् ॥१९॥ पादपोपगमनस्योत्तमत्वं प्रदर्शयन् तद्विधिमाह-'अयं' इत्यादि । मूलम्-अयं से उत्तमे धम्मे, पुबहाणस्स पग्गहे ॥ अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥ २०॥ छाया–स उत्तमो धर्मः, पूर्वस्थानस्य प्रग्रहः ॥ अचिरं प्रत्युपेक्ष्य, विहरेत्तिष्ठेन्माहनः ॥२०॥ जो मुनि पूर्वोक्त विधिके अनुसार पादपोपगमनकी विधिका पालन करता है वह मुनि शारीरिक समस्त व्यापारोंके निरोधमें भी शृगाल पिपीलिका और गृध्र आदि मांसशोणितभक्षी जीवों द्वारा अपने शरीरका मांस और शोणित खाये जाने पर भी चलितशरीर नहीं होता है। शरीरमें जरा भी कष्टका अनुभव नहीं करता है। अथवा मरणान्तिकसमुद्धात प्राप्त यह भिक्षु महासत्त्व-बलविशिष्ट होनेसे ऐसी हालतमें भी उससे अचलित होता हुआ द्रव्यसे संस्तारकस्थान से और भावसे-शुभ अध्यवसाय से विचलित नहीं होता है, अर्थात् शगाल आदि द्वारा अपने शरीर का मांस शोणित खाये जानेपर भी यह भिक्षु समाधिस्थान से दूसरी जगह नहीं जाता ॥१९॥ पादपोपगमन में उत्तमता दिखलाते हुए सूत्रकार उसकी विधिका प्रदर्शन करते हैं-'अयं से' इत्यादि। ગમનની વિધિનું પાલન કરે છે તે મુનિ પિતાના શરીરના મેહથી તદ્દન વિરકત બની સિંહ, વાઘ, શીયાળ વગેરે માં સરકતભક્ષક જી દ્વારા પિતાના શરીરનું માંસ અને લેહી ખવાતા છતાં પણ ચલિત બનતા નથી–જરા પણ કષ્ટને અનુભવ કરતા નથી, અને મૃત્યુ આવતાં સુધી પણ તે ભિક્ષુ મહાસત્વબલવિશિષ્ટ હોવાથી એવી હાલતમાં પણ એથી અચલિત બની દ્રવ્યથી સંથારાના સ્થાનથી અને ભાવથી શુભ અધ્યવસાયથી ચલિત થતા નથી. અર્થા–શીયાળ વગેરે દ્વારા પોતાના શરીરના માંસ-લેહી ખવાયા છતાં પણ તે ભિક્ષુ સમાધિ स्थानथी भी स्थणे ता नथी. (१८) पाहपोपशमनमा उत्तमतमतi सूत्रा२ सनी विधि छ-'अयं से प्रत्याहि. श्री. साया सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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