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________________ [ ७८ ] विषय १३ सातवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १४ आश्रयस्थानोंमें भगवान्को भयंकर, अनेक प्रकारके उपसर्ग हुए और सांप, नेवले तथा गीध आदिके भी उपसर्ग हुए । १५ आठवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १६ चोर व्यभिचारी आदि, शक्तिधारी ग्रामरक्षक, व्यभिचारिणी स्त्रियां और अन्य पुरुष लोग भगवान्‌को उपसर्ग करते थे । १७ नवमी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १८ भगवान ऐहलौकिक पारलौकिक अनेक प्रकारके उपसर्गों को सहते थे, और अनेक प्रकार के सुरभि - दुरभिगन्धों को भी सहते थे । १९ दसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २३ बारहवीं गाथा का अवतरण, गाथा और छाया । २४ भगवान् से कभी कोई पूछता - ' तुम कौन हो ? ' तब भगवान कहते मैं भिक्षु हूं। तब वे भगवान् को निकल जानेके लिये कहते तब भगवान् वहांसे चले जाते । यदि नहीं जानेको कहते तो भगवान् कषाययुक्त उन मनुष्योंके प्रति समभावसे मौन होकर धर्मध्यान में संलग्न रहते । २५ तेरहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ २० भगवान् पांच समितियोंसे युक्त होकर अनेक प्रकारके स्पर्शोको सहन किये, अल्पभाषी भगवान् संयममें अरति और विषयानन्दमें रति को दूर कर संयमके आराधनमें प्रवृत्त हुए । २१ ग्यारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २२ शून्य घरों में अथवा निर्जन प्रदेशोंमें लोग भगवान से विविध प्रश्न पूछते थे, परन्तु भगवान् मौन रहते थे । कभी कभी कोई कोई जार पुरुष आदि आ कर भगवान् से पूछते थे, परन्तु भगवान् मौन रहते थे, तब वे क्रुद्ध हो कर भगवान् को दण्ड मुष्टि आदि से ताडते थे; लेकिन भगवान् निर्विकार हो कर सब सह लेते थे । पृष्ठाङ्क ५६७ ५६७ ५६७-५६८ ५६८- ५६९ ५६९ ५६९ ५७० ५७० ५७० ५७१ ५७२ ५७२ ५७३
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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