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________________ आचारागसूत्रे __एतैर्वस्त्रैः पर्युषितः व्यवस्थितो भिक्षुः-संयतो भवति, तस्य पूर्वोक्तस्य मिक्षोश्चेनस्येवमध्यवसायः खलु-निश्चयेन न भवति-मम कल्पेन-वस्त्रत्रयरूपेण न शीतापगमो भवति तदर्थमहं चतुर्थ वस्त्रं याचिष्ये । अध्यवसायस्य प्रतिषेधेन चतुर्थवस्त्रयाचनं तु सर्वथा हेयमेवेति दर्शितम् । यदि वस्त्र. त्रितयं न लब्धवान् शीतकालश्च सम्प्राप्तो भवेत् तदा तत् कल्पनीयं याचेत भिक्षुरिति दर्शयति-'स' इत्यादि-स-भिक्षुः यथैषणीयानि वस्त्राणि मूल्यतः प्रमाणतश्रोत्कर्षापकर्षरहितान्यपरिकर्माणि याचेत, एवं स एव यथापरिगृहीतानि =यथारूपप्राप्तानि श्वेतान्येव वस्त्राणि धारयेत् , किन्तु तानि वस्त्राणि नो धावेत्-धाठण्ड पड़ने पर वे एक कम्बल भी लेते है, जिससे शीतजन्य बाधा उन्हें बाधित न कर सके। ___ इन वस्त्रोंसे व्यवस्थित-युक्त जो साधु होता है। उसके चित्तमें निश्चयसे इस प्रकारका अध्यवसाय नहीं होता है कि-मेरा इस वस्त्रत्रय रखनेरूप कल्पसे शीतका निवारण नहीं होता है इसलिये चौथे वस्त्रकी याचना करूं। जब सूत्रकारने चौथे वस्त्रकी याचना करनेरूप अध्यवसायका ही प्रतिषेध किया है तो उससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे चतुर्थ वस्त्रकी याचना करेंगे ही कैसे ?-यह याचना तो सर्वथा त्याज्य ही है, हां इतना हो सकता है कि उसके पास यदि वे पूर्वोक्त तीन वस्त्र नहीं हैं और शीतकाल आ चुका है तो वे अपने लिये कल्पनीय ही वस्त्रोंकी याचना करेंगे, अकल्पनीय की नहीं, यही बात "से" इत्यादि सूत्रांश द्वारा प्रकट की है। वह भिक्षु यथैषणीय-प्रमाणसे एवं मूल्यसे जो उत्कर्ष और अपकर्ष राहत हैं ऐसे अपरिकम वस्त्रोंकी ही याचना कर सकते हैं। तथा याचना समयमें जो वस्त्र जिस रूपमें मिले हैं उसी લે છે જેથી ઠંડીને ઉપદ્રવ નહિ થાય. આ વસ્ત્રોથી વ્યવસ્થિતયુક્ત જે સાધુ હોય છે, તેના દિલમાં નિશ્ચયથી આ પ્રકારનો અધ્યવસાય થતું નથી કે મારા–આ વસ્ત્રત્રય રાખવારૂપ ૫થી ઠંડીને નિવારણ થતું નથી આથી ચોથા વસ્ત્રની યાચના કરું. જ્યારે સૂત્રકારે ચોથા વસ્ત્રની યાચના કરવારૂપ અધ્યવસાયને જ નિષેધ કરેલ છે તે આથી એ વાત સ્પષ્ટ થઈ જાય છે કે એ ચેથા વસ્ત્રની યાચના કરે પણ કઈ રીતે ?—એ યાચના તે સર્વથા ત્યાજ્ય જ છે, એટલું થઈ શકે છે કે એની પાસે જે પૂર્વોક્ત ત્રણ વસ્ત્ર ન હોય અને ઠંડી શરૂ થઈ ગઈ હોય તે તે પોતાને માટે કલ્પનીય વસ્ત્રોની જ યાચના કરે. અકલ્પનીયની નહીં, આ જ वात "से" इत्यादि सूत्रांशथी प्रगट ४२वामा मावेश छे. ते भिक्षु यथैषणीय श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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