SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय ५२३ ग्रहण नहीं करना चाहिये । इङ्गित मरणमें स्थित मुनि अपनी आत्माको काययोग और मनोयोगसे पृथक् करे और सभी परीषहोपसर्गोंको सहन करे। ५२०-५२२ ३७ उन्नीसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ३८ इङ्गित मरणकी अपेक्षा श्रेष्ठ पादपोपगमन मरणमें जो मुनि । स्थित होता है उसके सभी अङ्ग अकड जायें तो भी वह अपने स्थानसे नहीं उठे। ५२२-५२३ ३९ बीसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ४० यह पादपोपगमन मरण भक्तपरिज्ञा और इङ्गितमरणसे श्रेष्ठ है, अतः मुनि पादपोपगमनमरण स्वीकार करे। ५२४-५२५ ४१ इक्कीसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । ५२५ ४२ मुनि चतुर्विधाहारको छोडकर अचित्त स्थण्डिलमें पर्वतके समान अप्रकम्प रह कर विहित प्रत्युपेक्षणादि क्रिया करते हुए सभी प्रकारसे शरीर ममत्वका परित्याग करे । यदि उसे परिषहोपसर्गकी बाधा उपस्थित हो तो विचार करे कि यह शरीर जब मेरा नहीं है तो उसमें होनेवाली परीषहोपसर्गकी बाधासे मेरा क्या सम्बन्ध ? वह मेरा कुछ भी नहीं बिगाड सकती। ५२६ ४३ बाईसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । ४४ इन परीषहोपसर्गों को तो यावज्जीवन सहना ही है। ऐसा विचार कर शरीर परित्यागनिमित्त, सकल शारीरिक व्यापारसे रहित हो कर पादपोपगमनमरणके विधिज्ञ वह मुनि सभी परीषहोपसर्गों को सहे। ५२७ ४५ तेईसवी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ५२७-५२८ श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy