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________________ विषय [५०] ॥ अथ तृतीय उद्देश ॥ पृष्ठाङ्क १ द्वितीय उद्देशके साथ तृतीय उद्देशका सम्बन्धकथन । प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और छाया। २९४ २ ममतारहित, ज्ञानाचारादिके प्रतिपालक मुनि, धर्मोपकरणके अतिरिक्त कर्मबन्धके कारण वस्त्रादिकों को छोड कर विचरता है। २९४-२९५ ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ जो साधु, अचेल (अल्पवस्त्रधारी) और साधुमर्यादामें व्य यस्थित होते हैं उन्हें जीर्णवस्त्रसम्बन्धी चिन्ता कभी भी नहीं होती। २९६-२९८ ५ तृतीय सूत्रका अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया। २९८-२९९ ६ कर्मबन्धोंके विनाशके निमित्त प्रयत्नशील उस अचेल मुनिको उस अचेलावस्थामें अनेक प्रकार के परीषह प्राप्त होते हैं, वे परीषह उस मुनिके लिये तपःस्वरूप ही हैं। २९९-३०१ ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ मूत्र और छाया। भगवान्की आज्ञानुसार, अपनी २ सामर्थ्यके अनुकूल उत्कृष्ट या अपकृष्ट साध्वाचार पालनमें प्रवृत्त सभी मुनि सम्यक्स्वी हैं । सभी तीर्थङ्करों के शासनकालमें अचेल मुनि विविध परीषहोंको सहते हैं। ३०२-३०५ ९ पश्चम सूत्रका अवतरण, पञ्चम मूत्र और छाया। ३०६ जो सम्यग्ज्ञानको प्राप्त हो चुके हैं उनकी बाहें अथवा बाधायें कृश ( क्षीण ) हो जाती हैं कर्मक्षपणार्थ प्रवृत्त इन सम्यग्ज्ञानियोंके मांसशोणित सूख जाते हैं । ये अपनी समभावना और क्षमा आदि गुणोंसे संसारपरम्पराको छिन्न करके रहते हैं । इस प्रकारके साधु, तीर्थङ्करों द्वारा तीर्ण मुक्त और विरत कहे गये हैं। ३०६-३०८ ११ षष्ठ सूत्रका अवतरण, षष्ठ सूत्र और छाया । ३०८ ३०२ श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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