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________________ [४१] ॥ अथ पञ्चम उद्देश॥ विषय पृष्ठाङ्क १ चतुर्थ उद्देशके साथ पञ्चम उद्देशका सम्बन्ध-कथन । १५० २ प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और छाया । १५१ ३ आचार्य महाराज इदके समान निर्मल और अक्षोभ्य होकर निर्भय हो विचरते हैं। १५१-१५९ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया। १६० संशयात्मा शिष्य कभी भी समाधि नहीं पाता। कोई२ गृहस्थ भी तीर्थकरादिके उपदेशानुसार प्रवृत्ति करनेमें तत्पर रहता है और कोई कोई अनगार भी। किसी ज्ञानी मुनिके द्वारा तीर्थकरादि-उपदेशानुसार प्रवृत्ति-निमित्तप्रेरित शिष्य कभी भी निर्विष्ण [दुःखित] न होवे । १६०-१६६ ६ तृतीय सूत्रका अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया। १६६-१६७ ७ तीर्थकरोंने जो कुछ कहा है वह सभी सत्य और निश्शङ्क है। १६७-१६९ ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया । १६९-१७० ९ कोई२ श्रद्धालु विश्वासी मनुष्य, दीक्षा लेनेके बाद जिनोक्त जीवादि तत्त्वोंमें सन्देह होने पर 'जिनोक्त सभी तत्व यथार्थ ही हैं, अन्यथा नहीं हो सकता' इस प्रकार उन तत्त्वोंको सम्यक् मानता है और वह बादमें भी उनको सर्वदा सम्यक ही मानता है। कोई२ सम्यक् माननेवाला बादमें असम्यक् मानने लगता है । कोई २ असम्यक् माननेवाला बादमें सम्यक् मानने लगता है। कोई २ सम्यक माननेवाला बादमें भी सर्वज्ञोक्त पदार्थों को सम्यक् और असर्वज्ञोक्त पदार्थों को असम्यक् ही मानता है। जिन भगवान से कथित होनेके कारण जो पदार्थ सम्यक् हो हैं उनको असम्यक् माननेवाला कोई २ बादमें भी मिथ्यादृष्टियों के श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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