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________________ सम्वक्त्व-अध्य ४. उ. ४ ६७५ भावतमसि वर्तमानस्य बालस्य कथं सम्यक्त्वलाभासम्भवः ? इति जिज्ञासायामाह-'जस्स नत्थि' इत्यादि। मूलम्-जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कुओसिया ?६। छाया--यस्य नास्ति पुरा पश्चात् मध्ये तस्य कुतः स्यात् ॥ मू० ६ ॥ टीका--यस्य-मोहतमसि वर्तमानस्य जीवस्य पुरा-पूर्वस्मिन् काले पश्चात् भविष्यत्काले नास्ति-पूर्व सम्यक्त्वं नाभूत् , अग्रेऽपि न तद् भविष्यति, तस्य मध्ये मध्यभवे-वर्तमानजन्मनि, कुतः स्यात् कथं भवेत्-न भवेदित्यर्थे । “आदावन्ते च यन्नास्ति वर्तमानेऽपि तत्तथा ” इति लोकन्यायस्य सर्वानुभवसिद्धत्वादिति भावः। अव्यवहारराश्यपेक्षयैतत् । से प्रवृत्ति ही नहीं होती। अथवा हेयोपादेय के विवेक के अयोग्य होने से ऐसे मनुष्य को सम्यक्त्व का लाभ असम्भव है, यह भी “आज्ञायाः लाभो नास्ति' इस वाक्य का अर्थ होता है, क्यों कि-'आज्ञा' का द्वितीय अर्थ बोधि-समकित है उसका लाभ ऐसे मनुष्य को होता नहीं ॥ सू०५॥ __ भावान्धकार में रहा हुआ बाल जीव सम्यक्त्व के लाभ से वंचित रहता है । इसीकी पुष्टि सूत्रकार करते हैं-'जस्स नत्थि पुरा' इत्यादि। मोहरूपी अन्धकार में रहनेवाला अज्ञानी जीव पूर्व जन्ममें और आगामी जन्ममें समकित के लाभ से वंचित रहता है तो मध्य अर्थात् वर्तमान जन्म में वह समकित का लाभ कर लेगा यह कैसे सम्भव हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता। "आदावन्ते च यन्नास्ति वर्तमानेऽपि तत्तथा" जिसकी सत्ता आदि और अन्त में नहीं है उसकी सत्ता वत्तेमान में भी नहीं होती है। यह एक सामान्य सा नियम है। પાદેયના વિવેકને અયોગ્ય હોવાથી આવા મનુષ્યને સમ્યકત્વનો લાભ અસંભવ छ २॥ ५५ " आज्ञायाः लाभो नास्ति' २॥ वायन। २५ थाय छ; म है “આજ્ઞા ને બીજો અર્થ બોધિ એટલે સમકિત છે, તેને લાભ આવા મનુષ્યને થતું નથી. એ સૂ૦ ૫. ભાવ-અંધકારમાં રહેલાં બાળ જીવ સમ્યક્ત્વના લાભથી વંચિત રહે છે. मानी पुष्टि सूत्र४२ ४२ छ-' जस्स नत्थि पुरा' त्यादि. મેહરૂપી અંધકારમાં રહેનાર અજ્ઞાની જીવ પૂર્વ જન્મમાં અને આવતા જન્મમાં સમકિતના લાભથી વંચિત રહે છે, તે પછી મધ્ય અર્થાત્ વર્તમાન જન્મમાં તે સમકિતનો લાભ કરી લેશે, તેને સંભવ કેવી રીતે હોય? અર્થાત્ સંભવ डोतो नथी. " आदावन्ते च यन्नास्ति वर्तमानेऽपि तत्तथा "-02ी सत्ता मा भने અંતમાં નથી તેની સત્તા વર્તમાનમાં પણ નથી હોતી, એ એક સામાન્ય નિયમ છે. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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