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विषय
पृष्ठाङ्क नहीं जाननेवाला उस बालको भगवान् तीर्थङ्करके उपदेशरूप
प्रवचनका अथवा सम्यक्त्वका लाभ नहीं होता! ६७०-६७५ ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र ।
६७५ १२ जिसको पूर्वकालमें सम्यक्त्व नहीं मिला है और भविष्यकालमें
भी जिसे सम्यक्त्व नहीं मिलनेवाला है उसे वर्तमानमें सम्यक्त्व कहांसे मिले ?
६७५-६७७ १३ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवां सूत्र ।। १४ जो भोगविलाससे रहित होता है वही जीवाजीवादि पदार्थोंका
सम्यग्ज्ञाता तत्त्वज्ञ आरम्भसे उपरत होता है। यह आरम्भसे उपरमण होना ही सम्यक्त्व है। इस आरम्भोपरमणसे जीव घोर दुःखजनक कर्मबन्धको, वधको और दुस्सह शारीरिक परितापको नहीं पाता है । अथवा जिस आरम्भसे जीव घोर दुःखजनक कर्मबन्ध और वधको तथा दुस्सह शारीरिक मानसिक परिताप को पाता है।
६७७-६८० १५ आठवें सूत्रका अवतरण आठवां सूत्र । १६ हिरण्यरजत मातापिता आदिका सम्बन्धरूप अथवा प्राणातिपात
रूप बाह्य आस्रवको और विषयाभिलाषरूप आन्तर स्रोतको रोक कर इस लोकमें मनुष्योंके बीच मोक्षाभिलाषी हो सावधव्यापारका परित्याग करे । अथवा इस लोकमें मनुष्योंके बीच बाह्य स्रोतको छिन्न कर निष्कर्मदर्शी हो जावे ।
६८०-६८२ १७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र ।
६८२ १८ ज्ञानावरणीयादिक कर्म अवश्यमेव स्व-स्वफलजनक होते हैं-ऐसा
जानकर आहेतागमजनित सम्यग्ज्ञानवान् मुनि कर्मबन्धके कारण सावध व्यापारको छोड़ता है।
६८२-६८३ १९ दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र ।
६८३ २० हे शिष्य ! जो कोई कर्मविदारण करनेमें उत्साहयुक्त, समिति
युक्त, स्वहितमें उद्योगयुक्त अथवा-सम्यग्ज्ञानादियुक्त, सर्वदा
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨