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विषय
विषयों में रागरहित मनुष्य ज्ञानावरणीयादि अष्टविध कर्मोंको
भस्म कर डालता है ।
१३ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवां सूत्र ।
१४ मुनि इस मनुष्यलोकको परिमित आयुवाला जानकर प्रशम गुणकी वृद्धि करके क्रोधादि कषायका त्याग करे ।
१५ आठवां सूत्र ।
१६ हे मुनि ! क्रोधादिवश त्रिकरण - त्रियोग से प्राणातिपात करने से जो प्राणियोंको दुःख होता है, या क्रोधादि से प्रज्वलित मनवाले जीवको जो मानसिक दुःख होता है उसको समझो, और क्रोधजनित कर्मविपाकसे भविष्यत्कालमें जो दुःख होता है उसे भी समझो। ऐसे क्रोधी व्यक्ति भविष्यत्कालमें नरकनिगोदादिभवसंबन्धी दुःखको भोगते हैं । दुःखागमके भय से कांपते हुए जीवको तुम दयादृष्टिसे देखो ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
१७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । १८ जो भगवान तीर्थङ्करके उपदेशमें श्रद्धायुक्त हैं, और उनके उपदेश को धारण करनेके कारण क्रोधादिकषायरूप अग्निके प्रशान्त हो जाने से शीतीभूत हो गये हैं, अतएव जो पापकर्मों के विषय में निदानरहित हैं, वे ही मोक्षसुखके भागी कहे गये हैं । १९ दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र । २० हे शिष्य ! जिसलिये क्रोधादिकषायों से युक्त जीव अनन्त दुःख पाता है, इसलिये तुम आतागम परिशीलन-जनित सम्यग्ज्ञान से युक्त अतिविद्वान् होकर क्रोधादिकषायजनित सन्तापसे अपनेको बचाओ | उद्देशसमाप्ति ।
॥ इति तृतीयोदेशः ॥
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