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विषय
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कर्मबन्धके कारण हो जाते हैं । जो अनास्रव-कर्मनिर्जराकारक व्रतविशेष हैं ये अपरिस्रव-कर्मबन्धके कारण हो जाते हैं, जो अपरिस्रव-कर्मबन्धके कारण हैं वे अनास्रव-कर्मनिर्जराकारक व्रतविशेष हो जाते हैं।
६०६-६१५ ३ द्वितीय सूत्र ।
६१५ ४ ‘जो आस्रव हैं वे परिस्रव हैं जो परिस्रव हैं वे आस्रव हैं, जो
अनास्रव हैं वे अपरिस्रव हैं जो अपरिस्रव हैं वे अनास्रव हैं'-इन पदोंको जानता हुआ ऐसा कौन मुनि है जो षड्जीवनिकायको बँधते हुए और मुक्त होते हुए जिनागमानुसार जान कर, तथा सभी तीर्थङ्करोंद्वारा भिन्न-भिन्नरूपसे प्रतिबोधित बन्धकारण
और निर्जराकारणको जानकर धर्माचरणमें प्रवृत्त न हो! ६१५-६१६ ५ नृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय सूत्र । ६ प्रवचनज्ञानसे युक्त मुनि, हेयोपादेयको तथा यथोपदिष्ट धर्म
को जाननेवाले संसारियों के लिये उपदेश देते हैं। ज्ञानीका उपदेश सुनकर, आर्त अथवा प्रमत्त भी प्रबुद्ध हो जाते है। मैंने जो कुछ कहा है और मैं जो कुछ कहता हूँ वह सत्य ही हैं। मैंने यह सब भगवान्से सुनकर ही कहा है । मोक्षाभिलाषीको इसमें सम्यक्त्व-श्रद्धान रखना चाहिये ।
६१६-६२० ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र ।
६२०-६२१ ८ संसारी जीव मृत्युसे नहीं बच सकते । ये धर्मसे बहिर्भूत होनेके कारण इच्छाके अधीन रहते हैं, अति-असंयमी होते हैं, काल-मृत्युसे गृहीत होते हैं, अथवा-आगामी वर्षमें या उसके बाद के वर्षों में धर्माचरण करने के संकल्प करते रहते हैं, और धान्यादि संग्रह करनेमें ही लगे रहते हैं। ऐसे संसारी जीव
अनन्तवार एकेन्द्रियादिक भवोंमें जन्म लेते रहते हैं। ६२१-६२४ ९ पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र ।
६२४ १० इस लोकमें कितनेक जीवोंको वारंवार उत्पन्न होनेके कारण
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨