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________________ १२४ आचाराङ्गसूत्रे है तब तक अर्थात् इन्द्रियों के ज्ञान की विद्यमानता में ही हे भव्य प्राणी ! तू अपना कल्याण-अर्थात् ज्ञानदर्शनचारित्र - आराधन रूप निज प्रयोजन को सिद्ध करले । यह निश्चित है - वृद्धावस्था आने पर, या किसी भयंकर रोग के होने पर - इन्द्रियों की शक्तियां या स्वयं इन्द्रियां ही क्षीण हो जाती हैं। जिस समय चेचक निकला करती है कई व्यक्तियों की आंखें फूट जाती हैं, कान भी बहिरे हो जाते हैं । लकवा की बीमारी में स्पर्शन इन्द्रिय शून्य हो जाती है, वचन वर्गणा ठीक नहीं निकलती, चलते समय पैर कहीं रखते हैं पड़ते हैं कहीं । कहा भी है" गात्रं संकुचितं गतिर्विगलिता भ्रष्टा च दन्तावलिः, दृष्टिर्नश्यति वर्धते बधिरता बक्त्रं च लालायते । वाक्यं नाद्रियते च बान्धवजनो भार्या न शुश्रूषते, हा ! कष्टं पुरुषस्य जीर्णवयसः पुत्रोऽप्यमित्रायते " ॥१॥ " दृष्टि घटी पलटी तनकी छवि बंक भई गति लंक नई है, रूष रही परनी घरनी, अतिरंक भयो परयंक लई है । hiva नार (नाड) बह्रै मुख लार, महामति संगति छार गई है, अंग उपंग पुराने परे, तिसना उर और नवीन भई है " ॥१॥ નથી થયું ત્યાં સુધી અર્થાત્ ઇન્દ્રિયાના જ્ઞાનની વિદ્યમાનતામાં જ હે ભવ્ય પ્રાણી! તું પોતાનું કલ્યાણ અર્થાત્ જ્ઞાનદર્શન ચારિત્ર આરાધનરૂપ નિજ પ્રયાજનને સિદ્ધ કરી લે. એ નિશ્ચિત છે વૃદ્ધાવસ્થા આવવાથી અગર કોઈ ભયંકર રોગ થવાથી ઈન્દ્રિયાની શક્તિ અગર સ્વયં ઇન્દ્રિયો જ ક્ષીણ થાય છે. જે વખતે શીતલા નીકળે છે તે વખતે કઇ વ્યક્તિઓની આંખો ફૂટી જાય છે, કાન પણ અહેરા થઈ જાય છે, લકવાની બીમારીમાં સ્પેન ઇન્દ્રિય શૂન્ય બની જાય છે, વચન –વાણી પણ ઠીક નીકળતી નથી, ચાલતી વખતે પગ કચાંય રાખે છે અને પગ પડે છે કયાંય. કહ્યું પણ છેઃ— " गात्रं संकुचितं गतिर्विगलिता भ्रष्टा च दन्तावलि -, दृष्टिर्नश्यति बर्धते बधिरता वक्त्रं च लालायते । वाक्यं नाद्रियते च बान्धवजनो भार्या न शुश्रूषते, हा ! कष्टं पुरुषस्य जीर्णवयसः पुत्रोऽप्यमित्रायते " ||१|| 66 दृष्टि घटी पलटी तनकी छबि बैंक भई गति लंक नई है, रूष रही परनी घरनी अति रंक भयो परयंक लई है। कांपत नार (नाड) बहै मुख लार महामति संगति छार गई है, अंग उपंग पुराने परे तिसना उर और नवीन भई है " ॥१॥ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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