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પ્રદ
विषय
१९ ज्ञाननेत्रयुक्त मुनिका वर्णन ।
२० दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र । २१ साधुको कामभोगागासे युक्त नहीं होना चाहिये; क्यों कि कामभोगाशा से युक्त साधु बहुमायी हो कर लोभ और वैर बढानेवाला होता है । वह अपनेको अमर समझता है, इष्ट-विनाशआदि कारण से वह उच्च स्वर से रुदन करता है । २२ ग्यारहवां सूत्रका अवतरण और ग्यारहवां सूत्र | २३ बाल - अज्ञानी परतैर्थिक कामभोगस्पृहाकी चिकित्सा कामभोगसेवनही कहते हैं; इसलिये वे हननादिक क्रियासे युक्त होते हैं। परन्तु अनगार ऐसे नहीं होते हैं । उद्देश- समाप्ति ।
॥ इति पञ्चमोद्देशः ॥
॥ अथ षष्ठोद्देशः ॥
१ पञ्चम उद्देशके साथ षष्ठ उद्देशका सम्बन्धप्रतिपादन । २ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र ।
३ षड्जीवनिकाय के उपघातका उपदेश नहीं देनेवाले अनगार कभी भी पापाचरण नहीं करते ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
पृष्ठाङ्क २९९-३०७
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४ द्वितीय सूत्र का अवतरण और द्वितीय सूत्र | ५ जो छ जीवनिकायों या छ व्रतों में से किसी एक की विराधना करता है वह छों की विराधना करता है । सुखार्थी वह वाचाल होता है, और अपने दुःखसे मूढ हो वह सुख के बदले दुःख ही पाता है। वह अपने विममादसे अपने व्रतों को विपरीत प्रकार से करता है, अथवा वह अपने संसार को बढाता है, या एकेन्द्रियादिरूप अवस्था को प्राप्त करता है । इसलिये चाहिये कि प्राणियों को जिनसे दुःख हो ऐसे दुःखजनक कर्मों का आचरण नहीं करे । इस प्रकार के कर्मों के अनाचरण से कर्मोपशान्ति होती है।
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