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आचारागसूत्रे ज्ञाऽवश्यं शरणीकरणीयेति भगवता प्रतिबोधितमिति भावः ।
उपभोगद्वारम्लोकः कस्मै प्रयोजनाय वनस्पतिकायमुपर्दयती ? त्याह-' अस्य चैव जीवितस्ये '-त्यादि। अस्यैव नश्वरस्य जीवितस्य-जीवनस्य सुखार्थम्आहार-वस्त्र-पात्र-माल्य-गन्ध-चूर्ण-तान्ता -ऽर्गला-खट्वा-पल्यङ्क-शिबिकाशकट-हल-मुसल-पीठ-फलक-सिंहासन-दण्ड-लकुट-कपाट-वीणा-शालभजिका-निर्माण-तापन-प्रतापन-प्रकाशने-न्धन-तैलाद्यर्थमित्यर्थः । तथा-परिवन्दनमानन-पूजनाय, परिवन्दन-प्रशंसा, तदर्थ, यथा-कश्चित् स्वप्रशंसार्थम् उपवनादौ पत्रादिकर्तनकलाकौशलेन वृक्षलतादीनां पत्रादीनि तथा छेदयति यथा तत्कर्तनेन लिए जीव को परिज्ञा (उपदेश) अवश्य स्वीकार करना चाहिए ।
उपभोगद्वारलोग किस प्रयोजन से वनस्पतिकाय की हिंसा करते हैं ? यह बतलाते हैंइसी नाशशील जीवन के सुख के लिए अर्थात् आहार, वस्त्र, पात्र, माला गंध, चूर्ण, तालवृन्त (पंखा), आगल, खाट, पलंग, पालकी, गाडी, हल, मूसल, पीढा, (वाजोट) फलको (पाट), सिंहासन, डंडा, लकडी, किवाड, वीणा, पुतली आदि बनवाने के लिए, तपाना, विशेष तपाना, प्रकाशन, ईंधन, और तैल आदि के प्रयोजन से वनस्पतिकाय की हिंसा करते हैं । तथा प्रशंसा के लिए भी वनस्पति की हिंसा करते हैं, जैसे कोई पुरुष अपनी प्रशंसा के लिए बगीचा आदि में पत्ता वगैरह काटने की कला में कुशलता प्रकट करने के अभिप्राय से वृक्ष लता वगैरह को इस प्रकार काटता है जिससे उसमें જીવને પરિજ્ઞા (ઉપદેશ)ને અવશ્ય સ્વીકાર કરે જોઈએ.
पोवा-- લેક શું પ્રજનથી વનસ્પતિકાયની હિંસા કરે છે? તે બતાવે છે–આ નાશ पामवासना सुम भाटे, अर्थात्-मा२, १४, पात्र, माला, अध, यूए, ५ मा मारियो, भाट, ५, पासी, डी, उस, भूस, माने, पाट, सिंहासन, 31, લાકડી, કમાડ, વીણા, પુતલી વગેરે બનાવવા માટે, તપાવવું વિશેષ તપાવવું, પ્રકાશન, ઈશ્વન-(બાળવાના લાકડા) અને તૈલ આદિના પ્રયજનથી વનસ્પતિકાયની હિંસા કરે છે. તથા પ્રશંસા માટે પણ વનસ્પતિકાયની હિંસા કરે છે, જેમકે-કઈ પુરુષ પોતાની પ્રશંસા માટે બગીચા આદિમાં પાંદડા વગેરે કાપવાની કલામાં કુશળતા બતાવવાના અભિપ્રાયથી
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧