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________________ - ४९२ आचारागसूत्रे यथावस्थितवस्तुतत्त्वाऽभिरुच्या श्रद्धयाऽभूतपूर्वो विषयवैरस्यपुरस्कृतः प्रमोदः प्रादुर्भवति । ॥ अनिवृत्तिकरणम्___ततश्च ग्रन्थिभेदोत्तरकालमेव ततो विशुद्धतम शुभाध्यवसायविशेषमनिवृत्तिकरणं प्राप्नोति, येन तावन्न निवर्तते जीवः सम्यक्त्वं न लभते यावदित्यनिवृत्तिकरणमुच्यते । अनिवृत्तिकरणबलेन जीवः सम्यगदर्शनं लभते । तदेव नैसर्गिकी श्रद्धोच्यते। ननु प्रागुक्तं 'मिथ्यात्वमोहनीयकर्मापशमादिभ्यः श्रद्धा जायते' पुनरुच्यते 'निसर्गादधिगमाद्वा श्रद्धा जायते । तदसंगतम् । वस्तुस्वरूप के प्रति रूचिरूप श्रद्धा से विषयवैराग्यपूर्वक एक ऐसा आनन्द उत्पन्न होता है, जिस का पहेले कभी अनुभव नहीं हुआ था । अनिवृत्तिकरणग्रंथिभेद के अनन्तर काल में अत्यन्त विशुद्ध परिणाम उत्पन्न होता है । वही अनिवृत्तिकरण कहलाता है। यह परिणाम प्राप्त होने पर जीव सम्यक्त्व प्राप्त किये बिना नहीं लौटता, इसी कारण इसे 'अनिवृत्तिकरण' कहते हैं । अनिवृत्तिकरण के द्वारा जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है । उसी को नैसर्गिक श्रद्धा कहते हैं। शा---पहले कहा था कि-'मिथ्यात्वमोहनीयकर्म के उपशम आदि से श्रद्धा उत्पन्न होती है और बाद में कहते हैं कि-'निसर्ग से, अथवा अधिगम से श्रद्धा उत्पन्न होती है। यह कथन परस्पर असंगत है ? યથાર્થવસ્તુસ્વરૂપની રૂચિરૂપ શ્રદ્ધાથી વિષયવૈરાગ્યપૂર્વક એક એ આનંદ ઉત્પન્ન થાય છે કે–જેને પહેલા કેઈ વખત અનુભવ થયો નથી. मनिवृत्ति २४ગ્રંથિભેદના અનન્તર (રતના) કાળમાં અત્યન્ત વિશુદ્ધ પરિણામ ઉત્પન્ન થાય છે ते 'अनिवत्तिकरण' उपाय छे. २॥ परिणाम प्राप्त थयां पछी ०१ सभ्यत्व प्राप्त ध्या विना पाछे नथी ३२ तथा मेने अनिवृत्तिकरण ४. छ. अनिवत्तिकरण १ દ્વારા સમ્યગ્દર્શન પ્રાપ્ત કરે છે. તેનેજ નૈસર્ગિક (સ્વાભાવિક) શ્રદ્ધા કહે છે. શંક–પહેલાં કહ્યું હતું કે–મિથ્યાત્વમેહનીય કર્મના ઉપશમ આદિથી શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થાય છે. અને પછી કહે છે કે- નિસર્ગ અથવા અધિગમથી શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થાય છે, એ કથન પરસ્પર અસંગત છે. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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