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________________ ३२८ आचारागसूत्रे तत्र प्रकृतिः-स्वभावः। आत्मपरिगृहीतकर्मपुद्गलानां तच्छक्तिरूपेण परिणमनम् । यथा निम्बस्य तिक्तत्वम् , गुडस्य मधुरत्वम् । प्रकृतिद्विविधा-मूलप्रकृतिः, उत्तरप्रकृतिश्च । मूलरूपः कर्मणः स्वभावो मूलप्रकृतिः। मूलप्रकृतिरष्टधा-ज्ञानावरणीय१ - दर्शनावरणीय२ - वेदनीय३ - मोहनीया४-ऽऽयुष्य५-नाम६-गोत्रान्तराय८-भेदात् । उक्तश्च "अट्ठ कम्मपगडीओ पणत्ताओ, तंजहा-णाणावरणिज्ज१, दंसणावरणिज्जर, वेयणिज३ मोहणिज्ज४, आउय५, नाम६, गोयं७, अंतराइयं८"। (प्रज्ञापना० पद-२१ उ. १ सू. २८८) । प्रकृति अर्थात् स्वभाव । आत्मा के द्वारा ग्रहण किए हुए कर्मपुद्गलों में अमुकअमुक प्रकार की शक्ति (स्वभाव) उत्पन्न हो जाना प्रकृतिबन्ध है । जैसे-नीम में कटुकता और गुड में मधुरता होती है। प्रकृति दो प्रकार की है-मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृति । कर्म का मूल स्वभाव मूलप्रकृति कहलाती है । मूलप्रकृति के आठ भेद हैं-(१) ज्ञानावरणीय, (२) दर्शनावरणीय, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयु, (६) नाम, (७) गोत्र, और (८) अन्तराय । कहा भी है: ___ " आठ कर्मप्रकृतियां हैं, वे इस प्रकार-(१) ज्ञानावरणीय, (२) दर्शनावरणीय, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयुष्य, (६) नाम, (७) गोत्र, (८) अन्तराय । " (प्रज्ञा. पद २१ उ. १ सू. २८८ ) પ્રકૃતિ અર્થાત્ સ્વભાવ,આત્મા દ્વારા ગ્રહણ કરેલા કર્મ પુદ્ગલોમાં અમુકઅમુક પ્રકારની શક્તિ (સ્વભાવ) નું ઉત્પન્ન થઈ જવું તે પ્રકૃતિબંધ છે. જેવી રીતે લીંબડામાં કડવાશ અને ગોળમાં મધુરતા હોય છે. प्रकृति में प्रा२नी छ- (१) भूतप्रकृति मन (२) उत्तरप्रकृति. भन भूद સ્વભાવ તે મૂલપ્રકૃતિ કહેવાય છે. તે મૂલ પ્રકૃતિના આઠ ભેદ છે– (૧) જ્ઞાનાવરણીય, (२) शना१२०ीय, (3) वहनीय, (४) भाडनीय, (५) आयु, (6) नाम, (७) गोत्र मन (८) मतिराय. छ : "213 मप्रकृतिमा छ, ते २॥ प्रमाण-ज्ञानाव२७॥य, शनाव२०ीय, हनीय, भारतीय, मायुष्य, नाम, गोत्र, याताय.” (प्रज्ञा. ५४ २१ ७. १ सू. २८८) શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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