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________________ - आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१. उ१. सू.५. लोकवादिन व्यन्तराः षोडशविधाः-१ पिशाच-२ भूत-३ यक्ष-४ राक्षस -५ किनर ६ किंपुरुष-७महोरग-८गन्धर्वा-९प्रज्ञप्तिक-१०पञ्चप्रज्ञप्तिक-११ऋषिवादिक१२भूतवादिक - १३ क्रन्दित - १४ महाक्रन्दित१५कूष्माण्ड-१६पतंग भेदात् । ( स्था. स्था. २ उ ३) जृम्भका अपि व्यन्तरदेवा दश सन्ति । यथा-(१) अन्नज़म्भकाः (२) पानजम्भकाः, (३) वस्त्रज़म्भकाः, (४) लयनजृम्भकाः, (५) शयनजृम्भकाः, (६) पुष्पजृम्भकाः, (७) फलजृम्भकाः, (८) पुष्पफलज़म्भकाः, (९) विद्याजम्भकाः, (१०) अव्यक्तजृम्भकाः। (६) ज्योतिष्कदेवाःज्योतींषि-प्रभापुञस्वरूपाणि समुज्ज्वलानि विमानानि, तत्र भवाः ___ व्यन्तर देव सोलह हैं-(१) पिशच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किंपुरुष, (७) महोरग, (८) गन्धर्व, (९) अप्रज्ञप्तिक, (१०) पञ्चप्रज्ञप्तिक, (११) ऋषिवादिक, (१२) भूतवादिक, (१३) क्रन्दित, (१४) महाक्रन्दित, (१५) कूष्माण्ड, और (१६) पतङ्ग ( स्था. स्था. २ उ. ३) जम्भक व्यन्तर देव भी दश प्रकार के हैं । जैसे (१) अन्नज़ुभक, (२) पानमुंभक, (३) वस्त्रजुंभक, (४) लयनजुंभक, (५) शयनजुंभक, (६) पुष्पमुंभक, (७) फल भक, (८) पुष्पफल भक, (९) विद्या भक और (१०) अव्यक्तमुंभक । । (३) ज्योतिष्क देव प्रभा के पुञ्ज के समान अत्यन्त उज्ज्वल विमानों में उत्पन्न होने वाले व्यन्तर हे सोण छ (१) पिाय, (२) भूत (3) यक्ष, (४) राक्षस (4) न२, (6) ५३५, (७) भाडा२२१, (८) अध, (6) प्रशस्ति, (१०) ५.यज्ञप्ति, (११) ऋषि , (१२) भूता, (१३) हित, (१४) भन्हित, (१५) ७मांड मने (१६) पतन, (स्था.. स्था. २ उ. ३) ogrs व्यन्त२ ३५ पा स प्रारना छ, भ-(१) Arranes, (२) पान agns, (3) qapga४, (४) अयनages, (५) शयनogniz, (६) You areis (७) H3 (८) ५०५३ds, (6) विधाogen४, मने (१०) मयsagas. (3 यातिवाપ્રભાના પુંજ સમાન અત્યંત ઉજવલ વિમાનમાં ઉત્પન્ન થવા વાળા દેવ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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