SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ आचारागसूत्रे शुद्धपथिवी । अश्मलघुखण्डमिश्रिता मृत्तिका-शर्करापृथिवी। वालुकाव्यतिमिश्रा मृत्तिका-वालुकापृथिवी । एवं बहुविधाः पृथिवीकायाः, तथाहि उपल-शिला- लवणो-पर-लोह -त्रपु-ताम्र - सीसक - रजत-सुवर्ण हरितालहिङ्गलक-मनःशिला-सस्यकाञ्जन-प्रवाला-भ्रकपटला-भ्रवालुका-गोमेद-रुचकाङ्कस्फटिक - लोहिनाक्ष - मरकत-मसारगल्ल-भुजगेन्द्रनील-गोपीचन्दन-गैरिक - हंसगर्भपुलक-सौगन्धिक-चन्द्रकान्त-सूर्यकान्त-वैडूर्य-जलकान्तादयः सर्वे बादरपृथिवीकायभेदाः। एते च शुद्धपृथिव्यादयः स्वखनिस्थिता एव चेतनावन्तः। गोमयकचवरादिरूपशस्त्रोपहता रविवह्नितापरूपशस्त्रोपहताश्च गतचेतना भवन्ति । बालू मिली मृत्तिका बालुका पृथिवी कहलाती है । इस प्रकार पृथिवीकाय के अनेक भेद हैं, वे इस प्रकार : पत्थर, शिला, नमक, उपर, लोहा, रांगा, तांबा, शीशा, चांदी, सोना, हडताल, हिंगलु, मैनसिल, सस्यकांजन, मूंगा, अभ्रक अभ्रवालुका गोमेद, रुचक, अङ्क, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजग, इन्द्रनील, गोपीचन्दन, गेरू, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रकान्त सूर्यकान्त, वैडूर्य, जलकान्त, आदि बादर पृथिवीकाय के भेद हैं । वे शुद्ध पृथिवी आदि जब अपनी खान में स्थित होते हैं तभी सचेतन होते हैं। गोबर, कचरा आदि शस्त्रों से उपहत होकर या सूर्य की धूप और अग्नि के तापरूप शस्त्र से अचेमन हो जाते हैं। મળેલી માટી વાલુકા પૃથિવી કહેવાય છે. એ પ્રમાણે પૃથિવી કાયના અનેક ભેદ છે. ५.५२, शिक्षा, भाई, ५२-भारे, दु, थे, (), भु, सी, Ail, सोनु, ता, ति , मनशिक्ष, सुरभी, भू॥-५२पाणi, म, मश्रा , गोमेद, ३५४, ४, २५टि४, alsताक्ष, भ२४त, भसास, सु , छन्द्रनास, पीयन, गेरू, साल, Ya४, सोधि, यान्त, सूर्यान्त, वैडू, restra આદિ બાદરપૃથિવીકાયના ભેદ છે (આ ખર બાદર પૃથ્વીકાય છે). એ શુદ્ધ પૃથિવી આદિ જ્યારે પિતાની ખાણમાં સ્થિત હોય છે, ત્યારે તે સચેતન હોય છે. છાણ-કચરે આદિ શસ્ત્રોથી ઉપહત (હણાએલા) થઈને, અથવા તે સૂર્ય અને અગ્નિના તાપરૂપ શસ્ત્રથી અચેતન થઈ જાય છે. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy