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________________ आचार चिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. १ सू. ५ आत्मसिद्धि २२७ भिन्नता प्रतीयते । प्रकृतेऽपि प्राणी, भूतः, जीवः, सत्त्वः, इत्यादयो जीवशब्दस्य पर्यायाः, शरीरं वपुः, कायो, देहः, गात्रमित्यादयस्तु शरीरशब्दपर्याया ' अयं जीवस्तस्मान्न हन्तव्यः' इत्यनेनापि देहस्थितस्य प्राणिन एव हिंसा निषिध्यते । 6 आप्तागमस्तु समस्त एवात्मानं बोधयति, आत्मतत्त्वस्यैव सम्यग्दर्शनशानचारित्रार्थं तस्य प्रवृत्तत्वात् । तथापि कानिचिदागमवचनानि प्रमाणतया प्रदर्शयाम:से आयावादी' इति प्रस्तुतमेव वचनं तावद् गृहाण | 6 से जं पुण शब्द अलग हैं, इस लिए घटका अर्थ और आकाश का अर्थ अलग-अलग है । इसी प्रकार जीव के पर्यायवाचक प्राणी, भूत, जीव, सत्त्व आदि शब्द अलग हैं और देह के पर्यायवाचक शरीर, वपु, काय, गात्र आदि भिन्न हैं, अतः इन दोनों का अर्थ भी अलग होना चाहिए । ' यह जीव है अतः हनन करने योग्य नहीं है' इस वाक्य द्वारा देह में स्थित प्राणी की ही हिंसा का निषेध किया जाता है । आगम से आत्मा की सिद्धि के आप्त पुरुष द्वारा प्रणीत सम्पूर्ण आगम आत्मा का बोधक है । आत्मतत्त्व सम्यग् दर्शन, ज्ञान, और चारित्र के लिए हो आगम की प्रवृत्ति होती है फिर भी आगम के कतिपय वाक्य प्रमाणरूप में प्रदर्शित करते है: सब से पहले - ' से आयावादी, इस प्रस्तुत वाक्य को ही लीजिए પ્રમાણે જીવનાં પર્યાયવાચક–પ્રાણી, ભૂત, જીવ સત્ત્વ આદિ શબ્દ અલગ છે. અને हेडुना पर्यायवाथ - शरीर, वपु, अय, गात्र आहि लिन्न छे. ते भाटे मे मनेन। अर्थ પણ અલગ થવા જોઈએ. “ આ જીવ છે તેથી હનન કરવા ચાગ્ય નથી ” વાકય દ્વારા દેહમાં રહેલા પ્રાણીની જ હિંસાના નિષેધ કરવામાં આવ્યે છે. આગમથી આત્માની સિાધ્વ આ આમ પુરુષ દ્વારા પ્રણીત સંપૂર્ણ આગમ આત્માનું બેધક છે. આત્મતત્વના સમ્યગ્દર્શન, જ્ઞાન અને ચારિત્ર માટે જ આગમની પ્રવૃત્તિ હાય છે. તો પણ આગમના કેટલાક વાકય પ્રમાણરૂપમાં પ્રદર્શિત કરે છે सौथी प्रथम ' से आयावादी' मा प्रस्तुत या वायने ४ सहमे 'से जं पुण શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ઃ ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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