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________________ आचारचिन्तामणि- टीका अवतरणा पुद्गलास्तिकाय १०७ aat शस्त्रादिना लतादिवदच्छेद्यः सूच्यादिना चर्मवदभेद्यः, अग्निना काष्ठवददाद्यः, हस्तादिना वस्त्रपात्रत्रदग्राद्यश्च । उक्तञ्च भगवता भगवतीसूत्रे ( श० - २० उ० ५ ) - कइविहे पण्णत्ते १, " दव्वपरमाणू णं भंते । गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तंजहा - अच्छेज्जे, अभेज्जे, अडज्झे, अगेज्झे । " इति । द्रव्यपरमाणुः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ?, गौतम ! चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा अच्छेद्यः, अभेद्यः, अदायः, अग्राह्यः । इति च्छाया । यद्यपि परमाणुः पुद्गलत्वान्मूर्त्तस्तथाऽप्यसौ खण्डशः कर्तुमशक्यः, आकाशप्रदेशवत्परमाणोः पुद्गलपरमजघन्यांशरूपत्वात् सर्वपरिमाणेभ्योऽपकृष्टं परिमाणं परमाणोरेव तस्मात्सोऽखण्ड एव । परमाणु, शस्त्र के द्वारा लता आदि की भाँति छेदा नहीं जा सकता, चमडे की तरह सुई आदि से भेदा नहीं जा सकता, काष्ठ के समान अग्नि आदि से जल नहीं सकता और वस्त्र पात्र आदि पदार्थों की तरह हाथ आदिसे पकड़ा नहीं जा सकता । भगवान् भगवतीसूत्र (श. २०, उ०५ ) में कहा है प्रश्न- भगवन् ! द्रव्य परमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - गौतम ! चार प्रकारका कहा गया हैं- अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य । परमाणु, पुदगल होने के कारण मूर्तिक है, फिर भी उस के खण्ड नहीं किये जा सकते। जैसे आकाश का एक प्रदेश जघन्य अंशरूप है और उसका परिमाण सभी પરમાણુ, શસ્ત્ર દ્વારા લતા આદિના પ્રમાણે છેદી શકાતું નથી, ચામડાની જેમ સેાય વગેરેથી વીંધી શકાતુ નથી, કાષ્ઠની જેમ અગ્નિ આદિથી માળી શકાતુ નથી, અને વસ્ત્ર પાત્ર આદિ પદાર્થોની જેમ હાથ વગેરેથી પકડી શકાતું નથી. लगवाने लगवती सूत्र - ( . २० - ७.५ ) भां उधुं छे: પ્રશ્ન- ભગવન્ ! દ્રષ્ય પરમાણુ કેટલા પ્રકારનુ કહ્યું છે? उत्तर- गौतम! यार प्रहार उछु छे-“छेद्य, अलेद्य, महाह्य भने अग्राह्य.” ( छेट्टी शाय नहि, लेही शाय नहि, मणी शडे नहि, अने श्रणु थर्ध शडे नहि ). પરમાણુ, પુદ્ગલ હોવાના કારણે મૂતિક છે તેા પણ તેના ખંડ–ભાગ થઈ શકતા નથી જેમકે:-આકાશને એક પ્રદેશ જઘન્ય અંશરૂપ છે, અને તેનું પરિમાણુ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ઃ ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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