________________
(प्रकाशकीय
'उत्तराध्ययन सूत्र' शासनपति श्रमण भगवान् महावीर की अंतिम धर्म-देशना तो है ही, उनकी सम्पूर्ण देशना का सार-रूप जैन धर्म का प्रतिनिधि आगम भी है। इस एक सूत्र की स्वाध्याय से जैन धर्म को समग्रतः जाना और समझा जा सकता है। अनेक भव्य आत्मायें इसके आधार पर आत्म-कल्याण कर चुकी हैं, कर रही हैं और करती रहेंगी।
संयम सुमेरु चारित्र चूडामणि मुनि श्री मायाराम जी महाराज की पावन स्मृति में प्रस्तुत शास्त्र का प्रकाशन हो रहा है। सर्वविदित है कि मुनि श्री मायाराम जी महाराज का सम्पूर्ण जीवन आगम की व्याख्याओं का साकार रूप था। आगम उनके आचरण में अभिव्यक्ति एवम् जीवन्त हुए थे। उनके संयम की जय-जयकार से विगत पूरी शताब्दी निनादित है।
हमारा इस से बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है कि हमें 'उत्तराध्ययन सूत्र' जैसे महत्त्वपूर्ण आगम को प्रकाशित करने का अधिकार मिला! इसके लिये हम संघशास्ता शासन-सूर्य पूज्य गुरुदेव मुनि श्री रामकृष्ण जी महाराज एवम् विद्या वाचस्पति महाश्रमण गुरुदेव श्री सुभद्र मुनि जी महाराज की कृपा-दृष्टि के ऋणी हैं। पाठकगण प्रस्तुत संस्करण से अधिकाधिक लाभान्वित होंगे, ऐसी हमें आशा है।
-प्रकाशक