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________________ महाबल रखा गया। कला-निपुण हो आठ सुन्दर व शीलवती बालाओं से विवाह कर महाबल दीर्घकाल तक देवदुर्लभ सुख भोगते रहे। आचार्य धर्मघोष द्वारा प्रवाहित ज्ञान-गंगा में निमज्जित हो महाबल विरक्त हुए। सभी सुख छोड़ दीक्षा ली। शुद्ध संयम साधना करते हुए संल्लेखना-समाधि सहित देह विसर्जित कर पांचवें देवलोक गये। वहां दस सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर भगवान् महावीर के शासन-काल में वाणिज्य ग्राम के श्रेष्ठी के यहां सुदर्शन नामक पुत्र-रूप में जन्मे। अनेक वर्षों तक श्रावक-धर्म का तथा तदुपरान्त बारह वर्षों तक श्रमण-धर्म का पालन कर कर्म-क्षय किये। कैवल्य-सूर्य उनकी आत्म-धरा पर चमका। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर उन्होंने परम सार्थकता को प्राप्त किया। (अध्ययन-18/51) मृगापुत्र सुग्रीव नगरी के राजा बलभद्र व रानी मृगा के पुत्र का नाम बलश्री था। वह मृगापुत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। अनेक राजकन्याओं से पाणिग्रहण कर सुख भोगते मृगापुत्र ने महल के झरोखे से उत्सव का सौंदर्य निहारते हुए एक श्रमण को देखा। विचार किया। उन्हें जातिस्मरण ज्ञान व सम्यक् बोध प्राप्त हुआ। श्रमण-जीवन के लिये माता-पिता से अनुमति मांगी। तब उन की माता-पिता से अनेक चर्चाएं हुईं। मृगापुत्र ने उनकी सभी आशंकायें निर्मूल सिद्ध कीं। आज्ञा पाई। दीक्षा ली। साधना की। सभी बंधन तोड़ वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। सचमुच! सम्यक् ज्ञान व दर्शन के बल से सभी बाधायें भी निज-पर-कल्याण में सहयोग देने लगती हैं। (अध्ययन-19) अनाथी मुनि ___ मगध-नरेश श्रेणिक मण्डितकुक्षि उद्यान में विहार हेतु गये। वहां उन्होंने एक युवा मुनि को देखा। राजा ने मुनि को कठोर संयमसाधना के स्थान पर यौवन-सुखों का उपभोग करने के लिये कहा। मुनि द्वारा स्वयं को अनाथ कहने पर राजा ने स्वयं उनके नाथ बनने का प्रस्ताव रखा। मुनि बोले-"जो स्वयं अनाथ हो, वह किसी का नाथ नहीं हो सकता।" इसका स्पष्टीकरण देते हुए बताया कि मैं कौशाम्बी के परिशिष्ट ८६७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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