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________________ सनत्कुमार चक्रवर्ती हस्तिनापुर नरेश अश्वसेन व महारानी सहदेवी के पुत्र चतुर्थ चक्रवर्ती सम्राट् सनत्कुमार थे। अन्य चक्रवर्तियों के समान उनके जन्म से पूर्व उनकी माता ने भी चौदह शुभ स्वप्न देखे थे। सनत्कुमार अलौकिक देह-सौंदर्य से सम्पन्न थे। चक्र-रत्न-सम्पन्न दिग्विजयी सम्राट् के रूप-सौंदर्य की प्रशंसा सौधर्मेन्द्र ने देवलोक में करते हुए कहा- सनत्कुमार का सौंदर्य अनुपम है। दो देव ब्राह्मण-रूप में सम्राट् सनत्कुमार को देखने आये। तैल-मर्दन कराते सम्राट् को देख देव विस्मय-विमुग्ध रह गये। सम्राट् ने कहा, "अभी क्या देखा है ! मेरा रूप तो राज-सभा में देखना।" ब्राह्मण राज-सभा में गये। चक्रवर्ती को देख कर वे बोले, “अब पहले वाली बात नहीं।" सम्राट् ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा, “अपना थूक देखो।" सम्राट् ने थूक कर देखा तो थूक में खून व कीड़े दिखाई दिये। उन्हें तत्क्षण विरक्ति हो गई। साम्राज्य छोड़ दीक्षा ले ली। कठोर साधना से अनेक लब्धियां पाईं। देवलोक में उनकी तितिक्षा व समता की प्रशंसा होने लगी। इस बार वही दो देव वैद्य-रूप में परीक्षा लेने आये। उन्होंने अनेक व्याधियों से ग्रस्त मुनि सनत्कुमार की देह को स्वस्थ करने को कहा तो मुनिराज बोले-कर्म-रोग की दवा हो तो दे दो। देवों ने अपनी असमर्थता व्यक्त की। मुनि ने तभी अपना थूक लगा कर चर्म रोग ठीक कर दिया। काया पुनः कुन्दन सी दमक उठी। देव चकित हो 'धन्य-धन्य' कहते चले गये। अनेक व्याधियों में साम्य भाव रखते हुए मुनि सनत्कुमार ने देह त्याग कर तृतीय देवलोक में जन्म लिया। वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे। तत्पश्चात् सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। ( अध्ययन- 18/37) भगवान् श्री शान्ति नाथ चक्रवर्ती लौकिक व धार्मिक, दोनों क्षेत्रों में शिखर पर सुशोभित पंचम चक्रवर्ती सम्राट् और सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ को जन्म देने का गौरव हस्तिनापुर नरेश विश्वसेन व महारानी अचिरा देवी को मिला। गर्भ में आते ही चतुर्दिक् फैली महामारी के शान्त होने से 'शांति' उनके नामकरण का आधार बना। इस से पूर्व भव में सर्वार्थ सिद्ध विमान के परिशिष्ट ८५६ *KSAT
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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