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२१६. भवनवासी (देवों) की (एकभवीय आयु) 'स्थिति' उत्कृष्टतः
साधिक (कुछ अधिक) एक सागरोपम की, तथा जघन्यतः दस हजार वर्षों की है।
२२०.व्यन्तर देवों की (एकभवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः एक
पल्योपम की, तथा जघन्यतः दस हजार वर्षों की होती है।
२२१. ज्योतिष्क (देवों) में (एकभवीय) (आयु-'स्थिति') उत्कृष्टतः एक
लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की, तथा जघन्यतः पल्योपम का आठवां भाग (जितने प्रमाण वाली) होती है। (यह कथन तारों
की अपेक्षा से समझना चाहिए)। २२२.सौधर्म (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-‘स्थिति') उत्कृष्टतः दो
सागरोपम, तथा जघन्यतः एक पल्योपम कही गई है।
२२३.ईशान (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-'स्थिति') उत्कृष्टतः
साधिक (कुछ अधिक दो सागरोपम की) तथा जघन्यतः 'साधिक' (कुछ अधिक) एक पल्योपम की होती है।
२२४.सनत्कुमार (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-) स्थिति' उत्कृष्टतः
सात सागरोपम की, तथा जघन्यतः दो सागरोपम की होती है।
२२५.महेन्द्र (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-) स्थिति' उत्कृष्टतः
‘साधिक' (कुछ अधिक) सात सागरोपम की, तथा जघन्यतः 'साधिक' (कुछ अधिक) दो सागरोपम की होती है।
अध्ययन-३६
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