________________
११६. (इसके अतिरिक्त) (६) संवर्तक वात (घास-फूस आदि को उड़ा
कर अन्यत्र ले जा सकने में समर्थ तेज वायु) इत्यादि (अन्य भी, बादर वायुकाय के) अनेक भेद होते हैं। (उनमें) वे सूक्ष्म (वायुकाय) एक (ही) प्रकार के, तथा नानात्व (बहुभेदों) से रहित कहे गये हैं।
१२०. (उनमें) सूक्ष्म (वायुकाय-जीव) समस्त लोक में, तथा बादर
(वायुकाय-जीव) लोक के एक देश (भाग में व्याप्त - अवस्थित) हैं। इसके आगे, (अब) मैं उनके चार प्रकार के काल-विभाग
(काल की अपेक्षा से भेदों) का कथन करूगा । १२१. (वे वायुकाय जीव) 'सन्तति' (प्रवाह-परम्परा) की दृष्टि से
अनादि और अनन्त हैं (किन्तु एकत्व-वैयक्तिक) 'स्थिति' की दृष्टि से सादि और सान्त भी हैं ।
१२२. वायुकाय जीवों की आयु-स्थिति (एक भव में जीवन काल-मर्यादा)
उत्कृष्टतः तीन हजार वर्षों की, तथा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की होती है।
१२३. (अपने) उस (वायु) काय को नहीं छोड़ें (और उसी काय में
निरन्तर उत्पन्न होते रहें) तो वायुकाय जीवों की काय-स्थिति उत्कृष्टतः असंख्यात काल की, तथा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की होती है।
१२४. वायुकाय जीवों का- अपने काय (वायु-काय) को (एक बार) छोड़
देने पर, (और अन्य कायों में उत्पन्न होकर पुनः उसी वायुकाय में उत्पन्न होने की स्थिति में, उनके उक्त निष्क्रमण व आगमन के मध्य का) अन्तर-काल उत्कृष्टतः अनन्त काल, तथा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त होता है।
अध्ययन-३६
८०१