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१२. वे (स्कन्ध आदि) प्रवाह की दृष्टि से अनादि व अनन्त होते हैं,
तथा (एक क्षेत्र में) 'स्थिति' की दृष्टि से सादि व सान्त भी होते
१३. रूपी अजीव (द्रव्यों) की स्थिति जघन्यतः एक समय (प्रमाण),
और उत्कृष्टतया असंख्यात काल (प्रमाण) की कही गई है।
१४. रूपी अजीव (द्रव्यों) का ‘अन्तर' (स्व-आकाश-क्षेत्र से स्खलित
होकर, पुनः उसी आकाश-क्षेत्र में आने का काल) जघन्यतः एक समय, तथा उत्कृष्टतः अनन्त काल का कहा गया है।
१५. वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श व संस्थान की दृष्टियों से उन (रूपी
अजीव द्रव्य के स्कन्ध आदि) का परिणाम (परिणति, स्वभाव, स्वरूप) पांच प्रकार का जानना चाहिए।
१६. (स्कन्ध आदि रूपी अजीव पुद्गल द्रव्यों में) जो वर्ण से परिणत होते
हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं- (१) कृष्ण (काला), (२) नील (नीला), (३) लोहित (रक्त), (४) हारिद्र (पीला), तथा (५) शुक्ल (श्वेत)।
१७. (स्कन्ध आदि रूपी अजीव पुद्गल द्रव्यों में) जो गन्ध से परिणत
होते हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं- (१) सुरभि गन्ध-परिणत, और (२) दुरभिगन्ध-परिणत ।
१८. (स्कन्ध आदि रूपी अजीव पुदगल द्रव्यों में) जो रस से परिणत
होते हैं, वे पांच प्रकार के कहे गये हैं- (१) तिक्त (तीखा, चरपरा), (२) कटु (कडुआ), (३) कसैला, (४) अम्ल (खट्टा), और (५) मधुर ।
अध्ययन-३६
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