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________________ अध्ययन-सार : ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र तथा अन्तराय, ये आठ कर्म जीव को संसार में भटकाने वाले हैं। श्रुत, मति, अवधि, मनः पर्यव और केवल ज्ञानावरणीय, ये ज्ञानावरणीय कर्म के पांच भेद हैं। निद्रा, प्रचला, निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि, चक्षुर्दर्शनावरणीय, अचक्षुर्दर्शनावरणीय, अवधि तथा केवल दर्शनावरणीय, ये नौ भेद दर्शनावरणीय के हैं। साता व असाता, वेदनीय कर्म के दो प्रकार हैं। मोहनीय के दर्शन व चारित्र मोहनीय, दो रूप हैं। सम्यक्त्व, मिथ्यात्व व सम्यक्-मिथ्यात्व, तीन प्रकृतियां दर्शन मोहनीय की हैं। कषाय व नोकषाय, चारित्र मोहनीय के भेद हैं। कषाय मोहनीय के सोलह व नोकषाय मोहनीय के सात या नौ प्रकार हैं। देव, नरक, तिर्यंच व मनुष्य, आयु कर्म चार प्रकार का है। शुभ व अशुभ, नाम कर्म दो प्रकार का है। गोत्र कर्म उच्च व निम्न, दो तरह का है। दोनों के आठ-आठ भेद हैं। दान, लाभ, भोग, उपभोग तथा वीर्य अंतराय कर्म के रूप हैं। आत्मा से बद्ध होने वाले कर्म छहों दिशाओं से जीव संग्रह करता है। एक समय में बंध ने वाले कर्मों के पुद्गल-दलिक अनन्त होते हैं। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय व अंतराय कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम व जघन्य अंतर्मुहूर्त की होती है। मोहनीय की उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटि सागरोपम व जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की है। आयु कर्म उत्कृष्टतः तैंतीस सागरोपम व जघन्यतः अंतर्मुहूर्त तक होता है। नाम व गोत्र की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम व जघन्य आठ मुहूर्त की होती है। कर्मों के अनुभाग सिद्धों के अनन्तवें भाग जितने और प्रदेश-परिमाण सभी जीवों से अधिक होते हैं। इन सभी अनुभागों को जानकर तत्व ज्ञाता साधक कर्म-क्षय हेतु साधना करे। ७२० उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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