SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन-सार: असंयम से निवृत्ति व संयम में प्रवृत्ति संसार-सागर से पार करने वाली चरण-विधि है। जो भिक्षु राग-द्वेष, तीन दण्डों, तीन गौरवों व तीन शल्यों का त्याग करता है; चार कषायों, संज्ञाओं व दो दुर्ध्यान का त्याग करता है। पांच महाव्रतों, समितियों व इन्द्रिय-विजय में यतनाशील होता है; छह काय जीवों, आहार लेने या न लेने के छह कारणों, सात पिण्डैषणाओं, अवग्रह प्रतिमाओं, भय-स्थानों, आठ मद-स्थानों, नौ ब्रह्मचर्य गुप्तियों, दस श्रमण-धर्मों, ग्यारह श्रमणोपासक-प्रतिमाओं, भिक्षु की बारह प्रतिमाओं, तेरह क्रियाओं, चौदह जीव-समूहों, पन्द्रह परमाधार्मिक देवों, सूत्रकृतांग के सोलह अध्ययनों, सत्रह प्रकार के असंयम, अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य, उन्नीस ज्ञातासूत्र अध्ययनों, बीस असमाधिस्थानों, इक्कीस शबल दोषों, बाईस परीषहों, सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों, चौबीस अतिरूपवान् देवों, पच्चीस (महाव्रतों की) भावनाओं, दशाश्रुत स्कन्ध आदि के छब्बीस उद्देशकों, सत्ताईस अनगार-गुणों, आचारांग के अट्ठाईस अध्ययनों, उनत्तीस पाप-श्रुत-प्रसंगों, तीस मोह-स्थानों, सिद्धों के इकत्तीस गुणों व बत्तीस योग-संग्रहों और तैंतीस प्रकार की आशातना में सदा यतनाशील रहता है, वह शीघ्र ही संसार से मुक्त हो जाता है। 00 ६५२ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy