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________________ अध्ययन परिचय प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-सम्यक् आचरण के सभी रूपों का वर्णन। इसमें इक्कीस गाथायें हैं। यह अध्ययन सम्यक् आचरण का संविधान है। इसीलिये इसका नाम 'चरण-विधि' रखा गया। सम्यक् ज्ञान के आलोक में सम्यक् दर्शन के बल से जीवन में सम्यक् चारित्र का आविर्भाव होता है। सम्यक् चारित्र न हो तो सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन साकार नहीं हो पाते। अपने होने का पूर्ण फल प्रदान नहीं कर पाते। ये तीनों वस्तुतः सम्यक्त्व के ही रूप हैं। तीनों से मिलकर सम्यक्त्व पूर्ण होता है। सम्यक् चारित्र या वांछनीय आचरण के सभी लक्षण यहां वर्णित हैं। साधक क्या करे, जिस से वह मुक्ति-मार्ग पर अग्रसर होता रहे? इसके लिए वह क्या न करे? क्या जाने? देखने में सीधे-सादे लगने वाले ये प्रश्न जीवन के अनेक संदर्भो में कठिनतम प्रश्न हो जाते हैं। तब साधक किंकर्तव्य-विमढता की स्थिति में फंस सकता है। ऐसी स्थिति उसके जीवन में कभी न आये, यह प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य है। साधक के सामने यदि यह पूर्णतः स्पष्ट हो कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना, तो अंतर्द्वद्व और तनाव उसे कभी नहीं घेर सकते। भ्रम का शिकार वह कभी नहीं हो सकता। यतना साधक को पाप-कर्म-बंधन से बचाने वाली शक्ति है। साधकजीवन में यतना का आधारभूत महत्त्व है। यतना क्या है? व्यवहार में कैसे वह प्रत्यक्ष एवं सक्रिय होती है? यतना के साथ जीने का अर्थ क्या है? यतना के व्यावहारिक रूप कौन-कौन से हैं? यह जानने के लिए क्या-क्या समझना आवश्यक है? क्या-क्या करने और क्या-क्या न करने से साधक यतना-शील होता है? सही है कि यतनाशीलता का अर्थ सद्प्रवृत्तियों को धारण करना और दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना है, परन्तु सद्प्रवृत्तियां कौन-सी हैं और दुष्प्रवृत्तियां कौन-सी.......यह भी यहां प्रतिपादित किया गया है। इस से भ्रम की आशंका न्यूनतम हो गई है। असंयम क्या है, जिस से निवृत्त होना है? संयम क्या है जिस में प्रवृत्त होना है? इन दोनों के कौन-कौन से रूप हैं, जिन से इन्हें देखते ही पहचाना जा सके? इन सभी प्रश्नों के उत्तर इस अध्ययन में उपलब्ध होते हैं। वास्तव में यह अध्ययन सीधे-सीधे सम्यक् व्यवहार में रूपान्तरित होने वाला सिद्धान्त-कोश है। इस कोश का एक-एक अर्थ यदि स्पष्टतः समझ ६३४ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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