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________________ बना देता है। (उन कर्म-प्रकृतियों की) दीर्घकालिक स्थिति को अल्पकालिक कर देता है, उनके तीव्र अनुभाव (कटु-विपाकी अनुभाग-रसबन्ध) को मन्द (निर्बल, निर्बलतर आदि) अनुभाव वाला बना देता है। बहुप्रदेशों वाली (कर्म-प्रकृतियों) को अल्पप्रदेश वाली बना देता है। आयुकर्म का बन्धन कदाचित् करता है, कदाचित् (तद्भवमोक्षगामी होने की स्थिति में या आयु बंधने के योग्य शास्त्रोक्त परिस्थिति के अभाव में) नहीं भी करता। (वह प्रमादी न हो तो) असातावेदनीय (आदि अशुभ) कर्म (प्रकृतियों) का बार-बार उपचय (बन्ध) नहीं करता तथा अनादि व अनन्त, दीर्घ मार्ग वाले, और (नरकादि गति-रूप) चार भागों (छोरों) वाले संसार वन को शीघ्र ही पार कर जाता है। (सू.२४) (प्रश्न-) भन्ते! 'धर्मकथा' (श्रुत रूप 'धर्म' की कथा - व्याख्यान, उपदेश आदि) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) धर्मकथा से (जीव कर्मों की) निर्जरा करता है। धर्मकथा से प्रवचन (जिनेन्द्र-वचन) की प्रभावना करता है। प्रवचन की प्रभावना करने वाला जीव भविष्य काल में कल्याण (शुभ फल) देने वाले कर्म को (ही) बांधता है। (सू.२५) (प्रश्न-) भन्ते! 'श्रुत' की आराधना (शास्त्र/सिद्धान्त के सम्यक् चिन्तन-मनन) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'श्रुत' की आराधना से (जीव) अज्ञान का क्षय करता है और (अज्ञान-जन्य राग आदि विकारों से प्रादुर्भूत) क्लेश को (कभी) प्राप्त नहीं होता । (अपितु अतिशय प्रशम-रस में डूबते हुए अपूर्व आनन्द का अनुभव करता है तथा नवीन-नवीन विशिष्ट संवेग व श्रद्धा से युक्त हो जाता है।) अध्ययन-२६ ५७३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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